अजा एकादशी व्रत कथा: पौराणिक कथा, महत्व और व्रत की विधि
अजा एकादशी का व्रत हिंदू धर्म में अत्यधिक पवित्र और महत्वपूर्ण माना जाता है। इस व्रत को करने से व्यक्ति को पापों से मुक्ति और मोक्ष प्राप्त होता है। अजा एकादशी की व्रत कथा का वर्णन पुराणों में मिलता है, जो इस व्रत के महत्व को और भी बढ़ा देता है।
अजा एकादशी की व्रत कथा सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र की है, जो अपने सत्य और धर्म के पालन के लिए जाने जाते थे। राजा हरिश्चंद्र ने अपनी सत्यनिष्ठा के कारण अनेक कष्टों का सामना किया, लेकिन उन्होंने कभी भी अपने धर्म और सत्य का त्याग नहीं किया।
अजा एकादशी का व्रत पापों से मुक्ति और मोक्ष प्राप्ति के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण है। इस व्रत को करने से व्यक्ति के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और उसे भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है। अजा एकादशी का व्रत उन लोगों के लिए भी महत्वपूर्ण है जो अपने जीवन के कठिन समय से गुजर रहे हैं और शांति व समृद्धि की कामना करते हैं।
अजा एकादशी व्रत कथा
अब ध्यानपूर्वक इस एकादशी का माहात्म्य श्रवण करो: पौराणिक काल में भगवान श्री राम के वंश में अयोध्या नगरी में एक चक्रवर्ती राजा हरिश्चन्द्र नाम के एक राजा हुए थे। राजा अपनी सत्यनिष्ठा और ईमानदारी के लिए प्रसिद्घ थे।
एक बार देवताओं ने इनकी परीक्षा लेने की योजना बनाई। राजा ने स्वप्न में देखा कि ऋषि विश्ववामित्र को उन्होंने अपना राजपाट दान कर दिया है। सुबह विश्वामित्र वास्तव में उनके द्वार पर आकर कहने लगे तुमने स्वप्न में मुझे अपना राज्य दान कर दिया।
राजा ने सत्यनिष्ठ व्रत का पालन करते हुए संपूर्ण राज्य विश्वामित्र को सौंप दिया। दान के लिए दक्षिणा चुकाने हेतु राजा हरिश्चन्द्र को पूर्व जन्म के कर्म फल के कारण पत्नी, बेटा एवं खुद को बेचना पड़ा। हरिश्चन्द्र को एक डोम ने खरीद लिया जो श्मशान भूमि में लोगों के दाह संस्कारा का काम करवाता था।
स्वयं वह एक चाण्डाल का दास बन गया। उसने उस चाण्डाल के यहाँ कफन लेने का काम किया, किन्तु उसने इस आपत्ति के काम में भी सत्य का साथ नहीं छोड़ा।
जब इसी प्रकार उसे कई वर्ष बीत गये तो उसे अपने इस नीच कर्म पर बड़ा दुख हुआ और वह इससे मुक्त होने का उपाय खोजने लगा। वह सदैव इसी चिन्ता में रहने लगा कि मैं क्या करूँ? किस प्रकार इस नीच कर्म से मुक्ति पाऊँ? एक बार की बात है, वह इसी चिन्ता में बैठा था कि गौतम् ऋषि उसके पास पहुँचे। हरिश्चन्द्र ने उन्हें प्रणाम किया और अपनी दुःख-भरी कथा सुनाने लगे।
राजा हरिश्चन्द्र की दुख-भरी कहानी सुनकर महर्षि गौतम भी अत्यन्त दुःखी हुए और उन्होंने राजा से कहा: हे राजन! भादों माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी का नाम अजा है। तुम उस एकादशी का विधानपूर्वक व्रत करो तथा रात्रि को जागरण करो। इससे तुम्हारे सभी पाप नष्ट हो जाएंगे।
महर्षि गौतम इतना कहकर आलोप हो गये। अजा नाम की एकादशी आने पर राजा हरिश्चन्द्र ने महर्षि के कहे अनुसार विधानपूर्वक उपवास तथा रात्रि जागरण किया। इस व्रत के प्रभाव से राजा के सभी पाप नष्ट हो गये। उस समय स्वर्ग में नगाड़े बजने लगे तथा पुष्पों की वर्षा होने लगी। उन्होने अपने सामने ब्रह्मा, विष्णु, महेश तथा देवेन्द्र आदि देवताओं को खड़ा पाया। उन्होने अपने मृतक पुत्र को जीवित तथा अपनी पत्नी को राजसी वस्त्र तथा आभूषणों से परिपूर्ण देखा।
व्रत के प्रभाव से राजा को पुनः अपने राज्य की प्राप्ति हुई। वास्तव में एक ऋषि ने राजा की परीक्षा लेने के लिए यह सब कौतुक किया था, परन्तु अजा एकादशी के व्रत के प्रभाव से ऋषि द्वारा रची गई सारी माया समाप्त हो गई और अन्त समय में हरिश्चन्द्र अपने परिवार सहित स्वर्ग लोक को गया।
हे राजन! यह सब अजा एकादशी के व्रत का प्रभाव था।
जो मनुष्य इस उपवास को विधानपूर्वक करते हैं तथा रात्रि-जागरण करते हैं, उनके सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और अन्त में वे स्वर्ग को प्राप्त करते हैं। इस एकादशी व्रत की कथा के श्रवण मात्र से ही अश्वमेध यज्ञ के फल की प्राप्ति हो जाती है।
Tags- अजा एकादशी व्रत कथा, अजा एकादशी की कहानी, अजा एकादशी व्रत का महत्व, अजा एकादशी व्रत कैसे करें, अजा एकादशी व्रत के लाभ, अजा एकादशी की पौराणिक कथा, अजा एकादशी व्रत कथा हिंदी में, aja ekadashi vrat katha in hindi