भागवत एकादशी व्रत कथा
10 October 2024, हिंदू धर्म में एकादशी व्रत का विशेष स्थान है। हर महीने दो बार आने वाली एकादशी में से कुछ खास एकादशियां भगवान विष्णु की उपासना के लिए होती हैं, जिन्हें भागवत एकादशी कहा जाता है। इस व्रत को करने से व्यक्ति को भगवान विष्णु की कृपा मिलती है, उसके सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और मोक्ष की प्राप्ति होती है। भागवत एकादशी व्रत की कथा सुनने और जानने से व्यक्ति के जीवन में आध्यात्मिक उन्नति होती है। आइए जानते हैं भागवत एकादशी व्रत की पौराणिक कथा और इसका महत्व।
भागवत एकादशी व्रत का धार्मिक महत्व अत्यधिक है। यह व्रत पापों से मुक्ति और मोक्ष की प्राप्ति के लिए किया जाता है। धार्मिक मान्यता है कि इस व्रत को करने से व्यक्ति के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और उसे जीवन के सभी कष्टों से मुक्ति मिलती है। भागवत एकादशी व्रत का पालन करने वाले भक्त को भगवान विष्णु की विशेष कृपा प्राप्त होती है और वह जीवन में सुख-समृद्धि प्राप्त करता है।
भागवत एकादशी व्रत का मुख्य उद्देश्य मोक्ष की प्राप्ति और आत्मा की शुद्धि है। जो व्यक्ति इस व्रत का पालन श्रद्धा और समर्पण के साथ करता है, उसे भगवान विष्णु की कृपा से मोक्ष प्राप्त होता है। यह व्रत व्यक्ति के जीवन में आध्यात्मिक उन्नति का मार्ग प्रशस्त करता है और उसे जीवन के सभी बंधनों से मुक्त कर देता है।
भागवत एकादशी व्रत का पालन करते समय भक्त को कुछ विशेष नियमों का पालन करना चाहिए। इस व्रत में निराहार या फलाहार करना चाहिए। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा की जाती है और तुलसी के पत्तों का प्रयोग विशेष रूप से किया जाता है। भक्त को इस दिन भगवान विष्णु का ध्यान करते हुए उपवास रखना चाहिए। व्रत के दौरान श्रद्धा और समर्पण का भाव होना चाहिए।
भागवत एकादशी व्रत कथा
भागवत एकादशी व्रत कथा के अनुसार, एक समय की बात है, राजा महिध्वज नामक एक धर्मनिष्ठ राजा था। वह भगवान विष्णु का परम भक्त था और धर्म के मार्ग पर चलता था। लेकिन राजा के छोटे भाई वज्रध्वज को उनसे घृणा थी। एक दिन, वज्रध्वज ने अपने बड़े भाई की हत्या कर दी और उनकी लाश को जंगल में एक पीपल के पेड़ के नीचे गाड़ दिया। इस अन्याय के कारण राजा महिध्वज का आत्मा प्रेत योनि में भटकने लगा।
भगवान विष्णु ने जब यह देखा कि उनके भक्त राजा की आत्मा कष्ट में है, तो उन्होंने अपने परम भक्त ऋषि को इस समस्या को हल करने के लिए भेजा। ऋषि ने राजा की आत्मा को शांति दिलाने के लिए उसे भागवत एकादशी व्रत करने का उपदेश दिया। राजा की आत्मा ने इस व्रत का पालन किया और भगवान विष्णु की कृपा से उसे मोक्ष की प्राप्ति हुई।