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गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा: यात्रा का महत्व, दर्शन स्थल और मार्गदर्शन
Updates / 2024/11/02

गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा के बारे में ज़रूरी जानकारी - मार्गदर्शन, स्थान, और यात्रा विवरण

गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा का महत्व और विवरण
गोवर्धन पर्वत, जिसे गिरिराज पर्वत भी कहा जाता है, भगवान कृष्ण की लीलाओं का महत्वपूर्ण स्थल है। माना जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण ने इंद्रदेव के प्रकोप से गोकुलवासियों की रक्षा के लिए इसी पर्वत को अपनी छोटी उंगली पर उठाया था। इस अद्भुत चमत्कार के कारण गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा का धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व अत्यधिक बढ़ गया।


गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा कहाँ से शुरू करें और कैसे करें
परिक्रमा का प्रारंभ दानघाटी मंदिर से होता है। यहाँ से परिक्रमा करते हुए भक्त वापस इसी मंदिर पर आकर समाप्त करते हैं। यह पूरी परिक्रमा लगभग 21 किलोमीटर की होती है और इसे पैदल, रिक्शा, या अन्य साधनों से भी किया जा सकता है। परिक्रमा में श्रद्धालुओं को भगवान श्रीकृष्ण के प्रति अटूट भक्ति और समर्पण से यात्रा करनी चाहिए।


गोवर्धन परिक्रमा के दौरान दर्शन के 7 प्रमुख स्थल

गोवर्धन परिक्रमा के दौरान 7 प्रमुख स्थलों का दर्शन विशेष महत्व रखता है। ये स्थल भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं और गोवर्धन पर्वत से जुड़े ऐतिहासिक और पौराणिक प्रसंगों से जुड़े हुए हैं। आइए, इन स्थानों का विस्तृत विवरण जानते हैं:


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1. दानघाटी मंदिर

  • विशेषता: दानघाटी मंदिर परिक्रमा का आरंभिक और समापन स्थल है। यहाँ गिरिराज गोवर्धन की प्रतिमा का विशेष पूजन होता है, जो भक्तों के लिए अत्यधिक महत्व रखती है।
  • कहानी: यह स्थान श्रीकृष्ण द्वारा ग्वाल-बालों के साथ गोपियों से माखन का दान लेने की लीलाओं से जुड़ा हुआ है।
  • महत्व: यहाँ दर्शन करने से यात्रा की सफल शुरुआत होती है, और भक्त अपनी परिक्रमा का संकल्प लेते हैं।

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2. मानसी गंगा

  • विशेषता: मानसी गंगा एक पवित्र सरोवर है, जिसे श्रीकृष्ण ने अपनी माया शक्ति से प्रकट किया था।
  • कहानी: मान्यता है कि जब गोकुलवासियों को तीर्थ यात्रा की आवश्यकता महसूस हुई, तब श्रीकृष्ण ने उन्हें गंगा स्नान करवाने के लिए इस सरोवर को प्रकट किया।
  • महत्व: मानसी गंगा में स्नान करने से सभी पापों का नाश होता है, और भगवान श्रीकृष्ण की कृपा प्राप्त होती है। यहाँ परिक्रमा के दौरान भक्तों के लिए स्नान और पूजा का महत्व है।

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3. गोविंद कुंड

  • विशेषता: गोविंद कुंड एक प्राचीन जलाशय है, जहाँ इंद्रदेव के गर्व को नष्ट करने के बाद भगवान कृष्ण ने यज्ञ किया था।
  • कहानी: श्रीकृष्ण ने इंद्र के गर्व को हराकर यहाँ एक यज्ञ का आयोजन किया था, जहाँ इंद्र ने उनकी महानता को स्वीकारा।
  • महत्व: भक्त इस कुंड में जल अर्पित करते हैं और श्रीकृष्ण का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। यहाँ परिक्रमा करते समय ध्यान और ध्यानपूर्वक यज्ञ स्थल की पूजा का विशेष महत्व है।

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4. राधा कुंड और श्याम कुंड

  • विशेषता: राधा कुंड और श्याम कुंड दो विशेष जलाशय हैं, जो राधा और कृष्ण के प्रेम का प्रतीक माने जाते हैं।
  • कहानी: एक कथा के अनुसार, राधा और कृष्ण ने इस कुंड में स्नान करके प्रेम और भक्ति की अनूठी मिसाल स्थापित की थी।
  • महत्व: भक्त यहाँ स्नान कर राधा और कृष्ण की भक्ति प्राप्त करते हैं और आशीर्वाद मांगते हैं। विशेषकर कार्तिक माह में इस कुंड में स्नान करने का विशेष महत्व है।

Kusum Sarovar

5. कुसुम सरोवर

  • विशेषता: कुसुम सरोवर एक सुंदर ऐतिहासिक जलाशय है, जहाँ वृक्ष और फूलों की बहुतायत होती है।
  • कहानी: यह स्थान राधा-कृष्ण की लीलाओं से जुड़ा हुआ है, जहाँ श्रीकृष्ण ने राधा रानी के लिए कुसुम (फूल) एकत्रित किए थे।
  • महत्व: यह स्थल विशेष ध्यान और विश्राम के लिए जाना जाता है। भक्त यहाँ बैठकर भजन और कीर्तन करते हैं और अपनी यात्रा में विश्राम प्राप्त करते हैं।

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6. पूंछरी का लोटा

  • विशेषता: गोवर्धन पर्वत के इस कोने में भगवान श्रीकृष्ण के पदचिन्हों की स्थापना है। यह स्थान परिक्रमा का महत्वपूर्ण स्थल माना जाता है।
  • कहानी: यहाँ यह मान्यता है कि गिरिराज पर्वत की परिक्रमा पूरी किए बिना लौटने वाले भक्तों को यहाँ दर्शन अवश्य करना चाहिए ताकि उनकी परिक्रमा पूर्ण मानी जाए।
  • महत्व: पूंछरी का लोटा में गिरिराज का आशीर्वाद लिया जाता है और भगवान के प्रति अपनी भक्ति का समर्पण किया जाता है।

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7. अन्याौर

  • विशेषता: अन्याौर गोवर्धन परिक्रमा का अंतिम स्थल है, जहाँ भक्त भगवान श्रीकृष्ण और गिरिराज गोवर्धन को धन्यवाद देने के लिए एकत्रित होते हैं।
  • कहानी: यह स्थान श्रीकृष्ण की लीलाओं का गवाह रहा है और यहाँ भक्त अपनी यात्रा का समापन करते हैं।
  • महत्व: यहाँ भक्त अपनी परिक्रमा का समापन करते हुए गिरिराज की कृपा और आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। परिक्रमा पूरी करने के बाद इस स्थान पर धन्यवाद ज्ञापित करना एक परंपरा है।

वृंदावन से गोवर्धन यात्रा का मार्ग
वृंदावन से गोवर्धन पहुँचने के लिए आप टैक्सी, बस या ऑटो का सहारा ले सकते हैं। वृंदावन और गोवर्धन के बीच लगभग 25 किलोमीटर की दूरी है। आप मथुरा रेलवे स्टेशन से भी गोवर्धन पहुँच सकते हैं, जो कि करीब 22 किलोमीटर दूर है।

गोवर्धन परिक्रमा करने का सही समय
परिक्रमा करने का कोई विशेष समय नहीं है, लेकिन पूर्णिमा के दिन इसे करना अत्यंत शुभ माना जाता है। गोवर्धन पूजा के अवसर पर तो यहाँ लाखों श्रद्धालु एकत्रित होते हैं।


यात्रा के दौरान आवश्यक मार्गदर्शन और सावधानियाँ

गोवर्धन परिक्रमा के दौरान इन सात स्थलों के दर्शन करना अत्यंत शुभ माना जाता है। प्रत्येक स्थान पर ध्यान और भक्ति के साथ दर्शन करने से यात्रा का महत्व और भी बढ़ जाता है। इस यात्रा को सफल और सुखद बनाने के लिए भक्तों को निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए:

  • अपने साथ पीने का पानी, प्रसाद और आरामदायक वस्त्र अवश्य रखें।
  • यात्रा के दौरान भगवान श्रीकृष्ण के प्रति अपनी भक्ति और आस्था बनाए रखें।
  • परिक्रमा करते समय आसपास के अन्य भक्तों की सहायता के लिए तैयार रहें और सहिष्णुता का पालन करें।

गोवर्धन परिक्रमा की यह यात्रा आत्मिक शांति, भगवान श्रीकृष्ण की कृपा और जीवन में सकारात्मकता लाने का अद्भुत मार्ग है।


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Frequently Asked Questions

गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा कितनी लंबी होती है?
गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा लगभग 21 किलोमीटर लंबी होती है।
गोवर्धन परिक्रमा कब करनी चाहिए?
गोवर्धन परिक्रमा किसी भी दिन की जा सकती है, लेकिन पूर्णिमा, अमावस्या और गोवर्धन पूजा पर विशेष भीड़ होती है।
गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा कहाँ से शुरू और समाप्त होती है?
गोवर्धन परिक्रमा को दानघाटी मंदिर से शुरू करके पुनः दानघाटी मंदिर पर समाप्त किया जाता है।
गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा करने के लाभ क्या हैं?
गोवर्धन परिक्रमा से भगवान कृष्ण और गिरिराज गोवर्धन की कृपा प्राप्त होती है, और सभी प्रकार के कष्टों से मुक्ति मिलती है।
गोवर्धन परिक्रमा के दौरान कौन से मुख्य स्थल देखने चाहिए?
गोवर्धन परिक्रमा के दौरान मुख्य रूप से दानघाटी मंदिर, मानसी गंगा, गोविंद कुंड, राधा कुंड, कुसुम सरोवर, पूंछरी का लोटा और अन्याौर की ओर दर्शन किए जाते हैं।

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