महावीर शूरवीर महारणा प्रताप जिसे अकबर कभी पकड नही सका, महारणा प्रताप की जीवनी
महारणा प्रताप: 7 फीट 5 इंच लंबाई, 110 किलो वजन। 81 किलो का भारी-भरकम भाला और छाती पर 72 किलो वजनी कवच। दुश्मन भी जिनके युद्ध-कौशल के कायल थे। हाथ मे उनकी तलवार का वजन 1.799 किलो था।
महाराणा प्रताप: शौर्य और स्वाभिमान के प्रतीक
मेवाड़ के इतिहास में वीरता और त्याग की गाथा गाते हैं महाराणा प्रताप. वो शख्सियत जिनका नाम लेते ही आंखों के सामने एक ऐसे राजपूत योद्धा की छवि उभर आती है, जिसने मुगल बादशाह अकबर के सामने कभी झुकना स्वीकार नहीं किया. उनकी वीरता की कहानियां सदियों से भारतवर्ष को गौरवान्वित करती आ रहीं हैं. आइए, आज इस ब्लॉग के माध्यम से महाराणा प्रताप के जीवन, उनके संघर्ष और विरासत पर एक नजर डालते हैं.
वीर बालक कीका से महाराणा प्रताप तक का सफर
महाराणा प्रताप का जन्म 9 मई, 1540 को राजस्थान के कुंभलगढ़ दुर्ग में हुआ था. उनके पिता महाराणा उदय सिंह द्वितीय और माता रानी जयवंताबाई थीं. बचपन में उनका नाम कीका था. इतिहासकारों के अनुसार उनका बचपन भील समुदाय के लोगों के साथ बीता, जहां उन्होंने युद्ध कौशल सीखा. घुड़सवारी, तलवारबाजी और युद्धनीति में महाराणा प्रताप पारंगत थे.
युवावस्था में प्रताप शक्तिशाली और साहसी योद्धा के रूप में जाने गए. 1567 में उनके पिता राणा उदयसिंह को मुगल सम्राट अकबर से हार का सामना करना पड़ा. जिसके बाद उन्होंने चित्तौड़ का किला छोड़ दिया और मेवाड़ की राजधानी को उदयपुर स्थानांतरित कर दिया. हालांकि, महाराणा प्रताप ने आत्मसमर्पण का रास्ता नहीं अपनाया. वो मुगलों के अधीनता स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं थे.
हल्दीघाटी का युद्ध - मुगलों को चुनौती
1576 में मेवाड़ की स्वतंत्रता के लिए महाराणा प्रताप ने हल्दीघाटी के युद्ध में अकबर की विशाल सेना का मुकाबला किया. इस युद्ध में उनके वफादार घोड़े चेतक की वीरता के किस्से भी प्रसिद्ध हैं. महाराणा प्रताप ने अकबर की 85 हजार सैनिकों वाली विशाल सेना के सामने अपने 20 हजार सैनिक और सीमित संसाधनों के बल पर स्वतंत्रता के लिए कई वर्षों तक संघर्ष किया। बताते हैं कि ये युद्ध तीन घंटे से अधिक समय तक चला था। इस युद्ध में जख्मी होने के बावजूद महाराणा मुगलों के हाथ नहीं आए।
गुरिल्ला युद्ध पद्धति से मुगलों को परेशान करना
हल्दीघाटी के युद्ध के बाद महाराणा प्रताप ने खुले मैदान में लड़ाई करने के बजाय गुरिल्ला युद्ध पद्धति अपनाई. वो अरावली के दुर्गों में रहते हुए मुगलों पर छापामार हमले करते थे. उनकी इस रणनीति से मुगलों को काफी परेशानी हुई. मुगल सेना को मेवाड़ के दुर्गों को जीतना मुश्किल हो गया. महाराणा प्रताप ने आदिवासी समुदायों का समर्थन भी प्राप्त किया, जिन्होंने उन्हें युद्ध में काफी मदद पहुंचाई.
कठिन जीवन और संघर्ष
गुरिल्ला युद्ध पद्धति अपनाने के बाद महाराणा प्रताप को काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा. उनके पास संसाधनों की कमी थी और उन्हें लगातार जगलों में रहना पड़ता था. कई बार उन्हें भोजन के लिए भी तरसना पड़ता था. लेकिन, उन्होंने हार नहीं मानी और मुगलों से लड़ाई जारी रखी. महाराणा प्रताप कुछ साथियों के साथ जंगल में जाकर छिप गए और यहीं जंगल के कंद-मूल खाकर लड़ते रहे। महाराणा यहीं से फिर से सेना को जमा करने में जुट गए। हालांकि, तब तक एक अनुमान के मुताबिक, मेवाड़ के मारे गए सैनिकों को की संख्या 1,600 तक पहुंच गई थी, जबकि मुगल सेना में 350 घायल सैनिकों के अलावा 3500 से लेकर-7800 सैनिकों की जान चली गई थी। 30 वर्षों के लगातार प्रयास के बाद भी अकबर महाराणा प्रताप को बंदी नहीं बना सका। आखिरकार, अकबर को महाराण को पकड़ने का ख्याल दिल से निकलना पड़ा।
महाराणा प्रताप की विरासत
अपने पूरे जीवनकाल में महाराणा प्रताप मुगलों के अधीन नहीं झुके. उन्होंने वीरता और स्वाभिमान से अपनी मातृभूमि की रक्षा की. हालांकि, उनका जीवनकाल में मेवाड़ को पूरी तरह से स्वतंत्र कराना संभव नहीं हो सका, लेकिन उन्होंने आने वाली पीढ़ी के लिए एक मिसाल कायम की. उन्होंने साबित कर दिया कि संसाधनों की कमी के बावजूद भी दृढ़ इच्छाशक्ति और विश्वास की एक मिसाल है महाराणा प्रताप
महाराणा प्रताप की मृत्यु पर अकबर की आंखें भी हुई थी नम
बताते हैं कि महाराणा प्रताप के 11 रानियां थीं, जिनमें मे से अजबदे पंवार मुख्य महारानी थी और उनके 17 पुत्रों में से अमर सिंह महाराणा प्रताप के उत्तराधिकारी और मेवाड़ के 14वें महाराणा बने। महाराणा प्रताप का निधन 19 जनवरी 1597 को हुआ था। कहा जाता है कि इस महाराणा की मृत्यु पर अकबर की आंखें भी नम हो गई थीं।
महाराणा प्रताप का प्रसिद्ध घोड़ा - चेतक
महाराणा प्रताप की कहानी उनके वीर घोड़े चेतक के बगैर अधूरी है. चेतक अपनी वफादारी, तेज गति और युद्ध कौशल के लिए जाना जाता था. युद्ध के मैदान में चेतक महाराणा प्रताप का सबसे बड़ा सहारा था.
चेतक की खासियतें
तब चेतक महाराणा को अपनी पीठ पर लिए 26 फीट के उस नाले को लांघ गया था, जिसे मुगल पार न कर सके। चेतक इतना अधिक ताकतवर था कि उसके मुंह के आगे हाथी की सूंड लगाई जाती थी। चेतक ने महाराणा को बचाने के लिए अपने प्राण त्याग दिए।
तेज गति: इतिहासकारों और लोक कथाओं के अनुसार, चेतक असाधारण रूप से तेज घोड़ा था. कहा जाता है कि वो इतना तेज दौड़ता था कि चीते को भी पीछे छोड़ सकता था.
युद्ध कौशल: चेतक को युद्ध के लिए विशेष रूप से प्रशिक्षित किया गया था. वो युद्ध के मैदान में परिस्थिति को समझकर प्रतिक्रिया करता था.
वफादारी: चेतक महाराणा प्रताप के प्रति अत्यंत वफादार था. हल्दी घाटी के युद्ध में जब अकबर की विशाल सेना ने महाराणा प्रताप को घेर लिया, तब चेतक ने उन्हें शत्रुओं से बचाने के लिए एक लंबी छलांग लगाई. इस दौरान चेतक घायल हो गया था.
महाराणा प्रताप और चेतक का बंधन: महाराणा प्रताप और चेतक का रिश्ता सिर्फ राजा और घोड़े का नहीं था, बल्कि एक योद्धा और उसके सबसे विश्वासपात्र साथी का था. युद्ध के मैदान में दोनों एक दूसरे का सहारा बनकर लड़ते थे.
चेतक की मृत्यु:
हल्दी घाटी के युद्ध में चेतक बुरी तरह घायल हो गया था. युद्धभूमि से महाराणा प्रताप को सुरक्षित स्थान पर पहुंचाने के बाद चेतक की मृत्यु हो गई. चेतक की मृत्यु महाराणा प्रताप के लिए एक गहरा आघात थी.
चेतक की विरासत:
चेतक को भारत के इतिहास में सबसे वफादार और वीर घोड़ों में से एक माना जाता है. चेतक की वीरता की कहानियां आज भी लोकप्रिय हैं और ये हमें वफादारी और कर्तव्यनिष्ठा की सीख देती हैं.
17 बेटों और 5 बेटियों के पिता थे प्रताप
महाराणा प्रताप को 14 पत्नियों से 17 बेटे और 5 बेटियां हुई थीं. उनके बेटोंं के नाम अमर सिंह, भगवानदास,सहसमल, गोपाल, काचरा, सांवलदास, दुर्जनसिंह, कल्याणदास, चंदा, शेखा, पूर्णमल, हाथी, रामसिंह, जसवंतसिंह, माना, नाथा, रायभान थे. मुगलों से लड़ने वाले महाराणा प्रताप के सबसे बड़े बेटे अमर सिंह उनकी पहली पत्नी महारानी अजब देपंवार से उनकी संतान थे. इसके अलावा महाराणा प्रताप की पांच बेटियां रखमावती, रामकंवर, कुसुमावती, दुर्गावती, सुक कंवर थीं.
महारणा प्रताप की पत्नियों के नाम
वहीं यदि आप महाराणा प्रताप की पत्नियों के बारे में जानना चाहते हैं तो बता दें कि उनकी 14 पत्नियां थीं. जिनके नाम अजब देपंवार, अमोलक दे चौहान, चंपा कंवर झाला, फूल कंवर राठौड़ प्रथम, रत्नकंवर पंवार, फूल कंवर राठौड़ द्वितीय, जसोदा चौहान, रत्नकंवर राठौड़, भगवत कंवर राठौड़, प्यार कंवर सोलंकी, शाहमेता हाड़ी, माधो कंवर राठौड़, आश कंवर खींचण, रणकंवर राठौड़ थे.
महारणा प्रताप के बेटो के नाम
महाराणा प्रताप उदय सिंह द्वितीय और महारानी जयंताबाई के पुत्र थे. जो वीर महाराणा सांगा के पौत्र थे. महाराणा प्रताप के भाई भी कम नहीं थे. बता दें प्रताप के 13 भाई थे. जिनके नाम शक्ति सिंह, खान सिंह, विरम देव, जेत सिंह, राय सिंह, जगमल, सगर, अगर, सिंहा, पच्छन, नारायणदास, सुलतान, लूणकरण, महेशदास, चंदा, सरदूल, रुद्र सिंह, भव सिंह, नेतसी, सिंह, बेरिसाल, मान सिंह, साहेब खान थे.
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