मणिकर्णिका घाट के अनसुलझे रहस्य: क्या आप जानते हैं इन रहस्यमयी तथ्यों के बारे में?
मणिकर्णिका घाट वाराणसी का सबसे प्राचीन और रहस्यमयी घाट है, जिसे मोक्ष की भूमि माना जाता है। यह गंगा किनारे स्थित वह स्थान है, जहाँ 24 घंटे अंतिम संस्कार की प्रक्रिया चलती रहती है, और कहा जाता है कि यहाँ की चिता कभी ठंडी नहीं होती। हिंदू धर्म में यह विश्वास किया जाता है कि जो व्यक्ति मणिकर्णिका घाट पर दाह संस्कार के बाद गंगा में विलीन होता है, उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है और वह पुनर्जन्म के चक्र से मुक्त हो जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान शिव और माता पार्वती यहाँ आए थे, और माता पार्वती की कान की मणि (मणिकर्णिका) गंगा में गिर गई थी, जिससे इस स्थान का नाम मणिकर्णिका घाट पड़ा।
यह घाट ना केवल धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यहाँ की वास्तुकला और ऐतिहासिक महत्व भी इसे विशेष बनाते हैं। घाट के चारों ओर कई प्राचीन मंदिर और धूनी रमाए हुए साधु-संत देखे जा सकते हैं, जो ध्यान और साधना में लीन रहते हैं। मणिकर्णिका घाट को लेकर कई रहस्यमयी मान्यताएँ भी प्रचलित हैं, जैसे यहाँ मृत्यु को महोत्सव की तरह देखा जाता है, और यह स्थान जीवन और मृत्यु के चक्र का ज्ञान कराता है। यह घाट हर साल लाखों श्रद्धालुओं और पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करता है, जो इसकी आध्यात्मिक शांति और रहस्यमयी वातावरण को अनुभव करने आते हैं।

वाराणसी को मोक्ष की नगरी कहा जाता है और यहाँ का मणिकर्णिका घाट इसे और भी रहस्यमयी बनाता है। यह घाट केवल एक साधारण गंगा घाट नहीं, बल्कि हिंदू धर्म में अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान रखता है। मान्यता है कि जो भी व्यक्ति यहाँ अंतिम संस्कार के बाद गंगा में विलीन होता है, उसे मोक्ष प्राप्त होता है और वह पुनर्जन्म के चक्र से मुक्त हो जाता है।
चिता जो कभी ठंडी नहीं होती
मणिकर्णिका घाट का सबसे बड़ा रहस्य यह है कि यहाँ 24x7 चिताएँ जलती रहती हैं। मान्यता है कि यहाँ की चिता कभी भी बुझती नहीं और यह अनंत काल से जल रही है। यह बात यहाँ आने वाले श्रद्धालुओं और पर्यटकों के लिए आश्चर्यजनक होती है।
भगवान शिव और माता पार्वती से जुड़ी कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान शिव और माता पार्वती वाराणसी आए थे। माता पार्वती ने गंगा स्नान करते समय अपने कान की मणि (मणिकर्णिका) खो दी। भगवान शिव ने तब स्वयं इसे खोजने का प्रयास किया लेकिन वे इसे नहीं पा सके। इसी कारण से इस स्थान का नाम "मणिकर्णिका" पड़ा और इसे विशेष धार्मिक महत्व प्राप्त हुआ।
डोम राजा का रहस्य
मणिकर्णिका घाट पर अंतिम संस्कार की पूरी प्रक्रिया डोम राजा द्वारा संचालित होती है। हिंदू समाज में डोम जाति को निम्न माना जाता है, लेकिन वाराणसी में डोम राजा को विशेष स्थान प्राप्त है क्योंकि वे ही अंतिम संस्कार की रस्म पूरी करते हैं। यहाँ तक कि राजा-महाराजाओं तक का अंतिम संस्कार भी उनकी अनुमति के बिना नहीं हो सकता।
यहाँ मृत्यु को महोत्सव माना जाता है
दुनिया में शायद ही कोई ऐसा स्थान होगा जहाँ मृत्यु को महोत्सव की तरह देखा जाता हो, लेकिन मणिकर्णिका घाट पर यह सत्य है। यहाँ का वातावरण मृत्यु से भयभीत नहीं करता, बल्कि जीवन और मृत्यु के चक्र का ज्ञान कराता है।
मणिकर्णिका घाट और "मृत्यु के बाद की दुनिया"
कुछ मान्यताओं के अनुसार, मणिकर्णिका घाट पर अंतिम संस्कार के बाद आत्माएं सीधा मुक्त होकर शिवलोक चली जाती हैं। यहाँ आने वाले संत, साधु और श्रद्धालु इस रहस्य को महसूस करने की कोशिश करते हैं।
मणिकर्णिका घाट केवल एक साधारण गंगा घाट नहीं, बल्कि एक ऐसा स्थान है जो जीवन, मृत्यु और मोक्ष के रहस्यों से भरा हुआ है। यह स्थान हिंदू धर्म में गहरी आस्था रखने वालों के लिए आध्यात्मिक शांति का प्रतीक है। अगर आप वाराणसी जाते हैं, तो इस घाट के रहस्यमयी वातावरण को अनुभव करना न भूलें।