नवरात्रि के दूसरे दिन माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा की जाती है।, जानिए माँ ब्रह्मचारिणी की कथा, मंत्र और आरती
26 September 2024, नवरात्रि के पावन पर्व में नौ दिनों तक माँ दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है। हर दिन एक विशेष देवी की आराधना की जाती है। नवरात्रि के दूसरे दिन माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा की जाती है। माँ ब्रह्मचारिणी देवी तपस्या, संयम और शक्ति का प्रतीक मानी जाती हैं। उनकी पूजा से भक्तों को जीवन में धैर्य, साहस और आत्मनियंत्रण की प्राप्ति होती है। माँ ब्रह्मचारिणी को तपस्विनी देवी के रूप में जाना जाता है और वे सभी सांसारिक मोह माया से परे हैं।
माँ ब्रह्मचारिणी कौन हैं?
माँ ब्रह्मचारिणी, देवी दुर्गा का दूसरा स्वरूप हैं। उनके नाम से ही स्पष्ट होता है कि वे ब्रह्मचर्य का पालन करने वाली हैं। ब्रह्मचारिणी का अर्थ होता है ‘तपस्विनी’ या ‘ब्रह्मचर्य का पालन करने वाली’। माँ ब्रह्मचारिणी ने कठोर तपस्या करके भगवान शिव को प्राप्त किया था। उनकी तपस्या और संयम से प्रेरणा लेकर भक्तजन भी जीवन में संयम और आत्मनियंत्रण का पालन करने की प्रेरणा पाते हैं।
माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा का महत्व
माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा से भक्तों को धैर्य, आत्मनियंत्रण और मानसिक शांति प्राप्त होती है। वे जीवन में आने वाली कठिनाइयों को सहन करने की शक्ति देती हैं। माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा करने से व्यक्ति के मन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है, और वह ध्यान और साधना की ओर अग्रसर होता है। उनकी पूजा से भक्तों को तप, त्याग और बलिदान के मार्ग पर चलने की प्रेरणा मिलती है।
माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा विधि
नवरात्रि के दूसरे दिन माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा करने के लिए सफेद वस्त्र धारण करना शुभ माना जाता है। माँ को सफेद फूल, अक्षत, रोली और चीनी अर्पित की जाती है। मिश्री और चीनी का प्रसाद माँ को अर्पित करना अत्यंत शुभ माना जाता है, क्योंकि ये शुद्धता और मिठास का प्रतीक हैं। माँ ब्रह्मचारिणी की आराधना से मानसिक शांति और ध्यान में वृद्धि होती है।
माँ ब्रह्मचारिणी का मंत्र
माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा के समय इस मंत्र का जाप करना अत्यंत शुभ माना जाता है:
"दधाना कर पद्माभ्यां अक्ष्मालाकमण्डलु।
देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा॥"
इस मंत्र के जाप से साधक को आत्मनियंत्रण और संयम की प्राप्ति होती है, जो जीवन में स्थिरता और शांति लाता है।
माँ ब्रह्मचारिणी की कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, माँ ब्रह्मचारिणी ने अपने पिछले जन्म में भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए कठोर तपस्या की थी। उन्होंने हजारों वर्षों तक केवल फल-फूल खाकर तप किया और फिर केवल पत्तों पर निर्भर रहीं। उनके इस कठिन तप के कारण उनका नाम ब्रह्मचारिणी पड़ा। उनकी यह तपस्या हमें जीवन में संयम, आत्मनियंत्रण और त्याग के महत्व को समझाती है।
नवरात्रि का दूसरा दिन माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा के लिए समर्पित होता है। उनकी पूजा से भक्तों को संयम, तप और धैर्य की प्राप्ति होती है। माँ ब्रह्मचारिणी की आराधना से जीवन में स्थिरता और शांति का आगमन होता है, जो व्यक्ति को जीवन की चुनौतियों का सामना करने के लिए सक्षम बनाता है।