ओशो (रजनीश) के जीवन की महान कहानी / History of Osho / ओशो की सीख और उनके लिखी किताबे
प्रस्तावना
ओशो, जिनका असली नाम रजनीश चंद्र मोहन जैन था, एक भारतीय आध्यात्मिक गुरु और विचारक थे जिन्होंने पूरी दुनिया में अपने अनुयायियों की एक बड़ी संख्या बनाई। ओशो का जन्म 11 दिसम्बर 1931 को मध्य प्रदेश के कुचवाड़ा गाँव में हुआ था। वे अपने क्रांतिकारी विचारों और तर्कपूर्ण दृष्टिकोण के लिए प्रसिद्ध थे। उनके प्रवचनों और लेखों ने न केवल भारत में बल्कि पश्चिमी दुनिया में भी आध्यात्मिकता की नई दिशा निर्धारित की।
प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
ओशो का जन्म एक जैन परिवार में हुआ था, और उनका प्रारंभिक जीवन बहुत ही साधारण था। वे एक जिज्ञासु बच्चे थे और हमेशा जीवन के गहरे प्रश्नों के उत्तर खोजने में रुचि रखते थे। उनकी शिक्षा जबलपुर के हितकारिणी कॉलेज में हुई, जहाँ उन्होंने दर्शनशास्त्र में स्नातक की डिग्री प्राप्त की। इसके बाद उन्होंने सागर विश्वविद्यालय से दर्शनशास्त्र में स्नातकोत्तर की डिग्री हासिल की और उसी विश्वविद्यालय में कुछ समय तक अध्यापन भी किया।
प्रारंभिक शिक्षा और दर्शनशास्त्र में गहरी रुचि
ओशो का प्रारंभिक जीवन बेहद साधारण और ग्रामीण परिवेश में बीता। उनका जन्म मध्य प्रदेश के कुचवाड़ा गाँव में हुआ था। बचपन से ही वे एक जिज्ञासु स्वभाव के थे और जीवन के गूढ़ रहस्यों को जानने की इच्छा उनमें प्रबल थी। उनकी प्रारंभिक शिक्षा जबलपुर के एक स्थानीय विद्यालय में हुई।
ओशो ने जबलपुर के हितकारिणी कॉलेज से दर्शनशास्त्र में स्नातक की डिग्री प्राप्त की। इसके बाद, उन्होंने सागर विश्वविद्यालय से दर्शनशास्त्र में स्नातकोत्तर की डिग्री हासिल की। अपने छात्र जीवन के दौरान ही उन्होंने विभिन्न आध्यात्मिक और धार्मिक ग्रंथों का अध्ययन किया और कई गुरुओं और साधुओं से मुलाकात की। उनका मानना था कि केवल पुस्तकीय ज्ञान पर्याप्त नहीं है, बल्कि अनुभवजन्य ज्ञान भी अत्यंत महत्वपूर्ण है।
ध्यान और अध्यात्म की ओर रुझान
ओशो का ध्यान और अध्यात्म की ओर झुकाव बहुत कम उम्र में ही शुरू हो गया था। उन्होंने अपनी युवावस्था में ही विभिन्न ध्यान पद्धतियों का अभ्यास करना शुरू कर दिया था। उनका मानना था कि ध्यान ही वह माध्यम है जिससे व्यक्ति अपने असली स्वरूप को पहचान सकता है। ओशो ने अपनी आध्यात्मिक यात्रा में कई गुरुओं और साधुओं से मुलाकात की और उनसे बहुत कुछ सीखा।
प्रवचन और विवाद
1960 के दशक में ओशो ने अपने प्रवचनों का सिलसिला शुरू किया। उनके प्रवचन भारतीय समाज की पारंपरिक मान्यताओं को चुनौती देते थे। वे जीवन, प्रेम, विवाह, धर्म और राजनीति जैसे मुद्दों पर खुलकर बात करते थे। उनकी बेबाकी और स्पष्टवादिता ने उन्हें बहुत से लोगों का प्रिय बना दिया, वहीं दूसरी ओर उनके विरोधी भी कम नहीं थे। ओशो के विचार और दृष्टिकोण को कई बार विवादों का सामना करना पड़ा, लेकिन उन्होंने कभी भी अपने विचारों से समझौता नहीं किया।
पुणे आश्रम
1970 के दशक में ओशो ने पुणे में एक आश्रम की स्थापना की, जो बाद में ओशो इंटरनेशनल मेडिटेशन रिज़ॉर्ट के नाम से प्रसिद्ध हुआ। यह आश्रम एक आध्यात्मिक केंद्र बन गया जहाँ लोग ध्यान और आत्म-खोज के लिए आते थे। यहाँ विभिन्न ध्यान विधियों और कार्यशालाओं का आयोजन किया जाता था। ओशो के अनुयायी, जिन्हें संन्यासी कहा जाता है, दुनिया भर से यहाँ आते थे।
रजनीशपुरम और अमेरिका का दौर
1981 में, ओशो अपने अनुयायियों के साथ अमेरिका चले गए और ओरेगन राज्य में एक बड़ी कम्यून की स्थापना की। इस कम्यून का नाम रजनीशपुरम रखा गया। यहाँ पर एक आत्मनिर्भर समाज का निर्माण किया गया, जिसमें कृषि, उद्योग, शिक्षा और ध्यान की सुविधाएँ उपलब्ध थीं। हालांकि, यह परियोजना विभिन्न कानूनी और सामाजिक विवादों में उलझ गई, और अंततः 1985 में ओशो को अमेरिका छोड़ना पड़ा।
अंतिम वर्ष और विरासत
अमेरिका से लौटने के बाद, ओशो ने पुनः पुणे में अपने आश्रम को अपनी गतिविधियों का केंद्र बनाया। उन्होंने यहाँ अपने अंतिम वर्षों में कई प्रवचन दिए और ध्यान विधियों को और भी विकसित किया। 19 जनवरी 1990 को ओशो का निधन हो गया। उनके निधन के बाद भी उनकी शिक्षाएँ और विचार आज भी लोगों को प्रेरित कर रहे हैं। उनके अनुयायी और प्रशंसक पूरी दुनिया में फैले हुए हैं और उनके नाम से कई ध्यान केंद्र और आश्रम चल रहे हैं।
ओशो के प्रमुख विचार और शिक्षाएँ
ओशो के विचार और शिक्षाएँ जीवन के हर पहलू को छूती हैं। वे कहते थे कि जीवन एक उत्सव है, जिसे पूरी तरह से जीना चाहिए। उन्होंने प्रेम, ध्यान, आत्म-स्वीकृति और स्वतंत्रता पर विशेष जोर दिया। उनके प्रमुख विचार निम्नलिखित हैं:
स्वतंत्रता और आत्म-स्वीकृति: ओशो का मानना था कि हर व्यक्ति को स्वतंत्रता का अधिकार है और उसे अपने वास्तविक स्वरूप को पहचानना चाहिए। वे कहते थे कि समाज और धर्म ने व्यक्ति को बंधनों में जकड़ रखा है, जिनसे मुक्त होना जरूरी है।
प्रेम और संबंध: ओशो ने प्रेम को जीवन की सबसे महत्वपूर्ण भावना माना। उनके अनुसार, प्रेम एक अनंत यात्रा है और इसे बिना शर्त और पूर्णता के साथ अनुभव करना चाहिए। उन्होंने पारंपरिक विवाह और संबंधों की आलोचना की और कहा कि इनसे व्यक्ति की स्वतंत्रता सीमित हो जाती है।
ध्यान और आत्म-खोज: ओशो का सबसे बड़ा योगदान ध्यान के क्षेत्र में था। उन्होंने विभिन्न ध्यान विधियों को विकसित किया और लोगों को सिखाया कि कैसे वे अपने भीतर के शांति और आनंद को पा सकते हैं। उनकी ध्यान विधियाँ जैसे कि डायनामिक मेडिटेशन, कुंडलिनी मेडिटेशन और नादब्रह्म मेडिटेशन आज भी बहुत लोकप्रिय हैं।
धर्म और आध्यात्मिकता: ओशो ने पारंपरिक धर्मों की आलोचना की और कहा कि वे व्यक्ति को सीमित करते हैं। उनके अनुसार, सच्ची आध्यात्मिकता वह है जो व्यक्ति को उसके वास्तविक स्वरूप के करीब ले जाए। वे मानते थे कि हर व्यक्ति में दिव्यता है और उसे पहचानना ही आध्यात्मिकता का असली उद्देश्य है।
आधुनिकता और प्राचीनता का समन्वय: ओशो ने आधुनिक जीवन के साथ प्राचीन आध्यात्मिकता का समन्वय करने की कोशिश की। उन्होंने कहा कि व्यक्ति को न तो पूरी तरह से आधुनिकता में खो जाना चाहिए और न ही प्राचीनता में। उनका मानना था कि दोनों का संतुलन ही सच्चे जीवन का रहस्य है।
रजनीश के "दस आदेश"
आचार्य रजनीश के शुरुआती दिनों में एक संवाददाता ने उनसे उनकी " दस आज्ञाओं " के बारे में पूछा था। जवाब में रजनीश ने कहा कि यह एक कठिन मामला है क्योंकि वे किसी भी तरह की आज्ञा के खिलाफ हैं, लेकिन "मजे के लिए" उन्होंने निम्नलिखित बातें बताईं:
1 कभी भी किसी की आज्ञा का पालन मत करो जब तक कि वह तुम्हारे भीतर से न आ रही हो।
2 जीवन के अलावा कोई अन्य परमेश्वर नहीं है।
3 सत्य तुम्हारे भीतर है, उसे अन्यत्र मत खोजो।
4 प्रेम प्रार्थना है।
5 शून्य हो जाना ही सत्य का द्वार है। शून्य ही साधन, लक्ष्य और प्राप्ति है।
6 जीवन अभी और यहीं है।
7 जागरूक होकर जियें।
8 तैरें नहीं – तैरें।
9 हर पल मरो ताकि तुम हर पल नये बन सको।
10 खोजो मत। जो है, वह है। रुको और देखो।
93 रोल्स रॉयस थी ओशो के पास
ठीक इसी दौर में ओशो को लग्जरी गाड़ियों का चस्का लगा, खासकर रोल्स-रॉयस का. उन्होंने एक-दो नहीं बल्कि 93 रोल्स रॉयस जुटा ली. एक इंटरव्यू में जब उनसे इन गाड़ियों के बारे में पूछा गया कि आखिर एक संन्यासी को इतनी सारी रोल्स-रॉयस की क्या जरूरत है?
तब ओशो ने जवाब दिया, ”मुझे इनमें से एक भी गाड़ियों की आवश्यकता नहीं है और वह मेरी हैं भी नहीं. लेकिन मेरे शिष्य चाहते हैं कि साल के 365 दिन अलग-अलग रोल्स-रॉयस से चलें. अगर मेरे शिष्यों को इससे खुशी मिलती है और प्रसन्न रहते हैं तो मैं उनकी खुशी को नष्ट नहीं करना चाहता हूं. इसमें कुछ भी बुरा नहीं है…”
ओशो की प्रमुख 5 किताबें
1. संभोग से समाधि की ओर : यह ओशो की सबसे चर्चित और विवादित किताब है, जिसमें ओशो ने काम ऊर्जा का विश्लेषण कर उसे अध्यात्म की यात्रा में सहयोगी बताया है। साथ ही यह किताब काम और उससे संबंधित सभी मान्यताओं और धारणाओं को एक सकारात्मक दृष्टिकोण देती है। ओशो कहते हैं 'काम पाप नहीं। यह भगवान तक पहुंचने का पहला पायदान है।'
2. ध्यान योग, प्रथम और अंतिम मुक्ति : यह ओशो द्वारा ध्यान पर दिए गए गहन प्रवचनों का संकलन है। इसमें ध्यान की अनेक विधियों का वर्णन है, जो हमारी सहायता कर सकती हैं। इस किताब को ध्यान के लिए मार्गदर्शक की तरह इस्तेमाल करने के लिए आपको इसे पहले से आखिरी पेज तक पढ़ना जरूरी है। कोई विधि आजमाने के लिए इस किताब का इस्तेमाल अंत:प्रेरणा से करें।
3. मैं मृत्यु सिखाता हूं : इस किताब के माध्यम से ओशो समझाते हैं कि जन्म और मृत्यु एक ही सिक्के को दो पहलू हैं। जन्म और मृत्यु को मिलाकर ही पूरा जीवन बनता है। जो अपने जीवन को सही और पूरे ढंग से नहीं जी पाते, वही मृत्यु से घबराते हैं। सच तो यह है ओशो जीवन को पूरे आनंद के साथ जीने की कला सिखाते हैं और यही कला मृत्यु के भय से हमें बचाती और जगाती है।
4. प्रेम-पंथ ऐसो कठिन : ओशो की यह किताब प्रेम के तीन रूपों - प्रेम में गिरना, प्रेम में होना और प्रेम ही हो जाना, को स्पष्ट करती है। ओशो एक प्रश्नोत्तर प्रवचनमाला शुरू करते हैं और प्रेम व जीवन से जुड़े सवालों की गहरी थाह में हमें गोता लगवाने लिए चलते हैं। यह एक इंद्रधनुषी यात्रा है - विरह की, पीड़ा की, आनंद की, अभीप्सा की और तृप्ति की।
5. कृष्ण स्मृति : यह किताब ओशो द्वारा कृष्ण के बहु-आयामी व्यक्तित्व पर दी गई 21 वार्ताओं और नवसंन्यास पर दिए गए एक विशेष प्रवचन का खास संकलन है। यही वह प्रवचनमाला है, जिसके दौरान ओशो के साक्षित्व में संन्यास ने नए शिखर को छूने के लिए उत्प्रेरणा ली और 'नव-संन्यास अंतरराष्ट्रीय' की संन्यास दीक्षा का सूत्रपात हुआ।
निष्कर्ष
ओशो का जीवन और उनकी शिक्षाएँ एक प्रेरणा स्रोत हैं। उन्होंने जीवन के गहरे रहस्यों को सरलता और स्पष्टता के साथ प्रस्तुत किया। उनके विचार और दृष्टिकोण ने न केवल भारतीय समाज को बल्कि पूरी दुनिया को प्रभावित किया। आज भी उनकी शिक्षाएँ लोगों को प्रेरित करती हैं और उन्हें आत्म-खोज की दिशा में मार्गदर्शन करती हैं। ओशो का संदेश है कि जीवन एक उत्सव है, जिसे पूरी तरह से जीना चाहिए, और यह संदेश आज भी उतना ही प्रासंगिक है जितना कि उनके जीवनकाल में था।
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