पौष पुत्र एकादशी व्रत कथा: महत्व, विधि और लाभ
पौष पुत्र एकादशी व्रत भगवान विष्णु को समर्पित है। इस दिन व्रत रखने से जीवन में सुख-समृद्धि और संतान सुख की प्राप्ति होती है। यह व्रत उन दंपतियों के लिए विशेष फलदायी है जो संतान प्राप्ति की कामना करते हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस व्रत से पापों का नाश होता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
पौष पुत्रदा एकादशी का हिंदू धर्म में विशेष महत्व है। यह व्रत पौष मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को किया जाता है और भगवान विष्णु को समर्पित है। धार्मिक मान्यता है कि इस दिन व्रत रखने से संतान प्राप्ति की इच्छा पूरी होती है और संतान के सुखद एवं स्वस्थ जीवन के लिए आशीर्वाद प्राप्त होता है। जो दंपति संतान सुख से वंचित होते हैं, उनके लिए यह व्रत अत्यंत फलदायी माना गया है। इस दिन श्रद्धालु व्रत का पालन कर भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना करते हैं और व्रत कथा सुनते हैं।
पौष पुत्र एकादशी व्रत कथा
प्राचीनकाल में भद्रावती नगरी में सुकेतु नामक एक वैश्य रहता था। उसके सभी कार्य धर्म के अनुसार होते थे, लेकिन वह संतान सुख से वंचित था। उसकी चिंता को देखकर एक दिन ऋषि ने उसे पौष पुत्र एकादशी व्रत का पालन करने का सुझाव दिया।
सुकेतु और उसकी पत्नी ने विधिपूर्वक इस व्रत का पालन किया। भगवान विष्णु की कृपा से उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। तब से यह व्रत संतान सुख की कामना के लिए अत्यंत लोकप्रिय हो गया।
पौष पुत्र एकादशी व्रत विधि
- व्रत के एक दिन पहले यानी दशमी तिथि को सात्विक भोजन करें।
- एकादशी के दिन प्रातः जल्दी उठकर स्नान करें और व्रत का संकल्प लें।
- भगवान विष्णु की प्रतिमा के सामने दीपक जलाएं और पीले फूल, फल, पंचामृत अर्पित करें।
- विष्णु सहस्रनाम का पाठ करें और व्रत कथा सुनें।
- अगले दिन द्वादशी को व्रत का पारण करें।
पौष पुत्र एकादशी के लाभ
- व्रत रखने से संतान सुख की प्राप्ति होती है।
- पापों का नाश होता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
- जीवन में सुख-समृद्धि और शांति आती है।
- भगवान विष्णु की कृपा से कष्टों का निवारण होता है।
यह व्रत सरल है और भगवान विष्णु की कृपा पाने का उत्तम माध्यम है। यदि आप संतान सुख की कामना करते हैं या जीवन में शांति चाहते हैं, तो पौष पुत्र एकादशी व्रत अवश्य करें।