परमाणु टेस्ट: 11 मई को साल 1998 में भारत ने वो किया, जिसने पूरी दुनिया को चौंका दिया था. अटल बिहारी की सरकार ने राजस्थान के पोखरण में एक के बाद एक 3 परमाणु टेस्ट किए. भारत के इस कदम से पूरी दुनिया दंग रह गई थी. इस पूरे ऑपरेशन को इस तरह से अंजाम दिया गया था कि किसी को इसकी भनक तक नहीं लगी. चलिए आपको ऑपरेशन शक्ति की पूरी कहानी बताते हैं.
अटल सरकार ने दी टेस्ट की मंजूरी-
साल 1998 में अटल बिहारी वाजपेयी दूसरी बार देश के प्रधानमंत्री बने. इसके बाद दिल्ली में साउथ ब्लॉक में एक सीक्रेट बैठक हुई. इसमें पीएम वाजपेयी, आडवाणी, एटॉमिक एनर्जी चीफ डॉक्टर आर. चिदंबरम, एनएसए ब्रजेश पाठक और डीआरडीओ प्रमुख अब्दुल कलाम शामिल थे. सबकुछ समझने के बाद अटल सरकार ने परमाणु टेस्ट की हरी झंडी दे दी.
क्यों बदली गई परमाणु टेस्ट की तारीख-
27 अप्रैल 1998 को न्यूक्लियर टेस्ट की तारीख तय की गई. लेकिन इसको टाल दिया गया. इसकी वजह एटॉमिक एनर्जी चीफ डॉक्टर आर. चिदंबरम की बेटी की शादी थी. न्यूक्लियर टेस्ट को लेकर कोशिश में किसी भी तरह की कोई कमी ना रह जाए, इसलिए तारीख बदल दी गई. इसके बाद 11 मई को पोखरण में धमाके की तारीख तय की गई.
CIA को दिया चकमा-
अमेरिका की खुफिया एजेंसी सीआईए भारत पर पूरी नजर रखे हुए थी. वो 4 सैटेलाइट से पोखरण इलाके में नजर रख रही थी. लेकिन सीआईए को चकमा देने के लिए भारत ने पूरी तैयारी की थी. वैज्ञानिकों के नाम बदल दिए गए थे. इसके अलावा उनको सेना की वर्दी में परीक्षण स्थल ले जाया गया था. ताजमहल, व्हाइट हाउस और कुंभकरण जैसे कोड दिए गए थे.
अमेरिका के सैटेलाइट से बचने के लिए रात में काम करने का फैसला किया गया. रात में उस वक्त काम होता था, जब अमेरिकी जासूसी सैटेलाइट दूसरी दिशा में मुड़ जाते थे. रेगिस्तान में बड़े कुएं खोदे गए. 10 मई की रात को योजना को ऑपरेशन शक्ति नाम दिया गया. सुबह तड़के 4 ट्रकों से परमाणु बमों को परीक्षण स्थल लाया गया था. इससे पहले एयरफोर्स के जहाज से इसे मुंबई से जैसलमेर लाया गया था. रेगिस्तान में खोदे गए कुओं में परमाणु बमों को रखा गया और उसके ऊपर बालू के पहाड़ बनाए गए. जब विस्फोट हुआ तो एक बड़ा गड्ढा बन गया था.
सेना की वर्दी में थे डॉ. कलाम-
सीआईए की निगरानी से बचने के लिए पूरी तैयारी की गई थी. वैज्ञानिकों को सेना की वर्दी में रखा गया था और उनको कोड नेम दिया गया था. डॉ. अब्दुल कलाम भी सेना की वर्दी में थे. उनको मेजर जनरल पृथ्वीराज नाम दिया गया था. डॉ. कलाम कभी भी टेस्ट साइट पर ग्रुप में नहीं जाते थे. किसी को भनक ना लगे, इसलिए वो अकेले जाते थे. निगरानी के बचने के लिए सुरक्षा भी कम रखी गई थी.
11 मई और 13 मई को किए गए टेस्ट-
11 मई को भारत ने 3 न्यूक्लियर टेस्ट किए. इसके बाद सरकार ने इसका ऐलान किया. इसके दो दिन बाद 13 मई को भारत ने दो और परमाणु विस्फोट किए. इससे 45 किलोटन टीएनटी ऊर्जा पैदा हुई थी. इसमें फिजन और फ्यूजन दोनों तरह के परीक्षण किए गए थे.
इंदिरा और अटल के परमाणु टेस्ट में क्या अंतर था-
इससे पहले भारत ने साल 1974 में भी परमाणु परीक्षण किया था. 18 मई को इसे अंजाम दिया गया था. इस ऑपरेशन को स्माइलिंग बुद्धा नाम दिया गया था. यह फिजन टेस्ट था. 18 मई 1974 को उस दिन बुद्ध जयंती थी. तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी उस दिन एक फोन का इंतजार कर रही थीं. उनके पास एक वैज्ञानिक का फोन आता है और वह कहते हैं "बुद्ध मुस्कराए". इस संदेश का मतलब था कि भारत ने पोखरण में परमाणु परीक्षण कर दिया है जो सफल रहा. इसके बाद दुनिया में भारत पहला ऐसा देश बन गया था जिसने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का सदस्य न होते हुए भी परमाणु परीक्षण करने का साहस किया है. यह वह दौर था जब भारत और पाकिस्तान के बीच दुश्मनी चरम पर थी. ऑपरेशन को स्माइलिंग बुद्धा नाम दिया गया था. यह फिजन टेस्ट था. इसको जमीन के अंदर किया गया था. इस विस्फोट से 12 किलोटन टीएनटी ऊर्जी निकली थी. हालांकि इसके यील्ड को लेकर विवाद है. फेडरेशन ऑफ अमेरिकन साइंटिस्ट्स ने दावा किया था कि भारत का ये परीक्षण शायद आंशिक तौर पर सफल रहे हों. साल 1974 के परमाणु टेस्ट का मकसद ये देखना था कि घर में बने परमाणु यंत्र में विस्फोट होता है या नहीं. जबकि साल 1998 में न्यूक्लियर टेस्ट का मकसद दुनिया को बताना था कि भारत परमाणु शक्ति संपन्नहो गया है.
भारत के परमाणु विस्फोट की दुनियाभर के देशों ने आलोचना की. अमेरिका ने भारत पर बैन भी लगाया. जर्मनी से लेकर संयुक्त राष्ट्र तक ने इसकी आलोचना की. लेकिन भारत को बैन से ज्यादा इस बात की खुशी थी कि वो परमाणु शक्ति बन गया था.
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