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राजस्थान का सांवलिया सेठ मंदिर: क्यू कहा जाता है यहा के भगवान को बिज़नस पार्टनर?
Updates / 2025/02/22

राजस्थान का सांवलिया सेठ मंदिर: क्यू कहा जाता है यहा के भगवान को बिज़नस पार्टनर?

राजस्थान के चित्तौड़गढ़ जिले में स्थित सांवलिया सेठ मंदिर न केवल धार्मिक स्थल है, बल्कि इसे व्यापारियों के लिए एक आस्था का केंद्र भी माना जाता है। इस मंदिर की खासियत यह है कि यहां भक्त भगवान श्रीकृष्ण को अपना बिजनेस पार्टनर मानते हैं और अपने लाभ का एक निश्चित भाग मंदिर में दान करते हैं। मान्यता है कि ऐसा करने से उनके व्यापार में उन्नति होती है।

सांवलिया सेठ मंदिर का इतिहास

सांवलिया सेठ मंदिर का इतिहास 19वीं सदी से जुड़ा हुआ है। कहा जाता है कि चित्तौड़गढ़ के मंड़फिया गांव के पास कुछ किसानों को खुदाई के दौरान भगवान श्रीकृष्ण की सांवली प्रतिमा प्राप्त हुई। इस चमत्कारी मूर्ति को देखकर लोगों में श्रद्धा बढ़ी और इसे स्थापित कर पूजा-अर्चना शुरू कर दी गई। धीरे-धीरे यह स्थान प्रसिद्ध हो गया और यहां एक भव्य मंदिर का निर्माण किया गया।



ऐसी मान्यता है कि भगवान श्री सावलिया सेठ का संबंध मीरा बाई से है। किवदंतियों के अनुसार सांवलिया सेठ मीरा बाई के वही गिरधर गोपाल है, जिनकी वह पूजा किया करती थी। तत्कालीन समय में संत-महात्माओं की जमात में मीरा बाई इन मूर्तियों के साथ भ्रमणशील रहती थी। दयाराम नामक संत की ऐसी ही एक जमात थी जिनके पास ये मूर्तियां थी। बताया जाता है की जब औरंगजेब की सेना मंदिरों में तोड़-फोड़ कर रही थी तब मेवाड़ में पहुंचने पर मुगल सैनिकों को इन मूर्तियों के बारे में पता लगा। मुगलों के हाथ लगने से पहले ही संत दयाराम ने प्रभु-प्रेरणा से इन मूर्तियों को बागुंड-भादसौड़ा की छापर में एक वट-वृक्ष के नीचे गड्ढा खोदकर पधरा दिया। किंवदंती यह है कि वर्ष 1840 में, भोलाराम गुर्जर नाम के एक ग्वाला ने बागुंड गाँव के छापर में तीन दिव्य मूर्तियों को भूमिगत दफनाने का सपना देखा था; साइट को खोदने पर, भगवान कृष्ण की तीन सुंदर मूर्तियों की खोज की गई, जैसा कि सपने में दिखाया गया था। मूर्तियों में से एक को मंडफिया ले जाया गया, एक को भादसोड़ा और तीसरा बागुंड गाँव के छापर में, उसी स्थान पर जहां यह पाया गया था। तीनों स्थान मंदिर बन गए। ये तीनों मंदिर 5 किमी की दूरी के भीतर एक-दूसरे के करीब स्थित हैं। सांवलिया जी के तीन मंदिर प्रसिद्ध हुए और तब से बड़ी संख्या में भक्त उनके दर्शन करने आते हैं। इन तीन मंदिरों में मंडफिया मंदिर को सांवलिया जी धाम (सांवलिया का निवास) के रूप में मान्यता प्राप्त है।



भगवान श्रीकृष्ण को क्यों माना जाता है बिजनेस पार्टनर?

यहां आने वाले भक्तों की मान्यता है कि यदि वे अपने व्यापार में भगवान सांवलिया सेठ को भागीदार बनाते हैं और लाभ का एक हिस्सा उन्हें अर्पित करते हैं, तो उनका व्यवसाय खूब फलता-फूलता है। इस आस्था के चलते कई छोटे-बड़े व्यापारी और उद्योगपति यहां नियमित रूप से दान देते हैं और अपने व्यवसाय की सफलता के लिए प्रार्थना करते हैं।



ट्रेन से सांवरिया सेठ मंदिर कैसे पहुंचे?

अगर आप रेल से श्री साँवलिया जी ( मण्डफिया) आना चाहते है तो श्री सांवलिया सेठ मंदिर का नजदीकी रेलवे स्टेशन चित्तौड़गढ़ से 40 KM, निम्बाहेड़ा से 40 KM, कपासन से 35 KM और उदयपुर (राज0) स्टेशन से 80 KM है । यह रेलवें स्टेशन भारत के मुख्य रेल मार्ग से जुड़े हुए हैं।



सांवलिया सेठ मंदिर की मान्यता

मान्यता है कि जो भी व्यक्ति सच्चे मन से भगवान से प्रार्थना करता है, उसकी मनोकामना अवश्य पूरी होती है। यही कारण है कि यहां हर साल लाखों श्रद्धालु अपनी समस्याओं का समाधान पाने और व्यापार में समृद्धि के लिए आते हैं।

सांवलिया सेठ मंदिर केवल एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि एक आस्था और विश्वास का प्रतीक है। यह मंदिर उन लोगों के लिए खास महत्व रखता है जो अपने जीवन और व्यापार में उन्नति की कामना करते हैं। अगर आप भी भगवान को अपने व्यवसाय में साझेदार बनाना चाहते हैं, तो एक बार सांवलिया सेठ के दर्शन अवश्य करें।



मंदिर की प्रमुख विशेषताएं

सांवलिया सेठ की दिव्य मूर्ति – भगवान श्रीकृष्ण की यह मूर्ति सांवली प्रतिमा में विराजमान है, जो भक्तों के लिए अद्भुत आस्था का केंद्र है।
दान-पत्र प्रथा – भक्त अपनी इच्छानुसार व्यापार के मुनाफे का हिस्सा दान पत्र में लिखकर मंदिर में जमा करते हैं।
विशाल भंडारा – यहां नियमित रूप से अन्नदान और भंडारा आयोजित किए जाते हैं, जिसमें हजारों लोग प्रसाद ग्रहण करते हैं।
विशेष पर्व और उत्सव – जन्माष्टमी, दीपावली और अन्नकूट महोत्सव जैसे प्रमुख त्योहारों पर मंदिर में विशेष आयोजन होते हैं।



सांवलियाजी मंदिर परिसर एक भव्य सुंदर संरचना है जो गुलाबी बलुआ पत्थर में निर्मित है। मंदिर के गर्भगृह में सेठ सांवलिया जी की काले पत्थर की बनी मूर्ति स्थापित है जो भगवान कृष्ण के रंग को दर्शाती है. सांवलिया सेठ मंदिर की वास्तुकला प्राचीन हिंदू मंदिरों से प्रेरित है मंदिर की दीवारों और खम्भों पर सुंदर नक्काशी की गयी है जबकि, फर्श गुलाबी, शुद्ध सफेद और पीले रंग के बेदाग रंगों से बना है.



Frequently Asked Questions

सांवलिया सेठ मंदिर कहां स्थित है?
सांवलिया सेठ मंदिर राजस्थान के चित्तौड़गढ़ जिले में मंड़फिया गांव में स्थित है।
भक्त सांवलिया सेठ को बिजनेस पार्टनर क्यों मानते हैं?
भक्त मानते हैं कि भगवान को व्यापार में शामिल करने से धन-धान्य में वृद्धि होती है, इसलिए वे लाभ का एक हिस्सा मंदिर में चढ़ाते हैं।
सांवलिया सेठ मंदिर की खास परंपराएं क्या हैं?
मंदिर में लोग अपनी मनोकामना पूर्ण होने पर विशेष भोग चढ़ाते हैं और दान देते हैं।
सांवलिया सेठ मंदिर में सालाना कितने श्रद्धालु आते हैं?
हर साल लाखों भक्त सांवलिया सेठ के दर्शन करने और अपनी आस्था व्यक्त करने यहां आते हैं।
सांवलिया सेठ मंदिर का इतिहास क्या है?
यह मंदिर भगवान श्रीकृष्ण के सांवले स्वरूप को समर्पित है, जिसकी प्रतिमा 1840 के दशक में मिली थी और तब से यह आस्था का केंद्र बना हुआ है।

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