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श्रावण महीने के पवित्र व्रत की सम्पूर्ण कथा और महत्व
Updates / 2024/07/06

श्रावण महीने के पवित्र व्रत की सम्पूर्ण कथा और महत्व

हिंदू धर्म में श्रावण मास का विशेष धार्मिक महत्व होता है। इसे साल का सबसे पवित्र महीना माना जाता है। इस महीने को श्रावण महीना या सावन मास भी कहते हैं। श्रावण में भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा बहुत श्रद्धा और भक्ति भाव से की जाती है। इस बार के सावन माह दो दुलर्भ संयोगों से भरा हुआ है। पहला तो इस बार श्रावण मास की शुरुआत सोमवार के पवित्र दिन से शुरू हो रहा है। दूसरा इस बार पूरे सावन में कुल 5 सोमवार के दिन पड़ेंगे। ऐसे में आइए इस लेख में श्रावण मास के पवित्र महीने के उपवास की कथा को विस्तार से बताएँगे।



हिंदू पंचांग के अनुसार, सावन का महीना 22 जुलाई 2024, सोमवार से शुरू होकर 19 अगस्त 2024, सोमवार को समाप्त होगा।


श्रावण मास की व्रत कथा 

एक साहूकार था जो भगवान शिव का अनन्‍य भक्‍त था। उसके पास धन-धान्‍य किसी भी चीज की कमी नहीं थी। लेकिन उसकी कोई संतान नहीं थी और वह इसी कामना को लेकर रोज शिवजी के मंदिर जाकर दीपक जलाता था। उसके इस भक्तिभाव को देखकर एक दिन माता पार्वती ने शिवजी से कहा कि प्रभु यह साहूकार आपका अनन्‍य भक्‍त है। इसको किसी बात का कष्‍ट है तो आपको उसे अवश्‍य दूर करना चाहिए। शिवजी बोले कि हे पार्वती इस साहूकार के पास पुत्र नहीं है। यह इसी से दु:खी रहता है।


माता पार्वती कहती हैं कि हे ईश्वर कृपा करके इसे पुत्र का वरदान दे दीजिए। तब भोलेनाथ ने कहा कि हे पार्वती साहूकार के भाग्‍य में पुत्र का योग नहीं है। ऐसे में अगर इसे पुत्र प्राप्ति का वरदान मिल भी गया तो वह केवल 12 वर्ष की आयु तक ही जीवित रहेगा। यह सुनने के बाद भी माता पार्वती ने कहा कि हे प्रभु आपको इस साहूकार को पुत्र का वर देना ही होगा अन्‍यथा भक्‍त क्‍यों आपकी सेवा-पूजा करेंगे? माता के बार-बार कहने से भोलेनाथ ने साहूकार को पुत्र का वरदान दिया। लेकिन यह भी कहा कि वह केवल 12 वर्ष तक ही जीवित रहेगा।



साहूकार यह सारी बातें सुन रहा था इसलिए उसे न तो खुशी हुई और न ही दु:ख। वह पहले की ही तरह भोलेनाथ की पूजा-अर्चना करता रहा। उधर सेठानी गर्भवती हुई और नवें महीने उसे सुंदर से बालक की प्राप्ति हुई। परिवार में खूब हर्षोल्‍लास मनाया गया लेकिन साहूकार पहले ही की तरह रहा और उसने बालक की 12 वर्ष की आयु का जिक्र किसी से भी नहीं किया।



जब बालक 11 वर्ष की आयु हो गई तो एक दिन साहूकार की सेठानी ने बालक के विवाह के लिए कहा। तो साहूकार ने कहा कि वह अभी बालक को पढ़ने के लिए काशीजी भेजेगा। इसके बाद उसने बालक के मामा जी को बुलाया और कहा कि इसे काशी पढ़ने के लिए ले जाओ और रास्‍ते में जिस भी स्‍थान पर रुकना वहां यज्ञ करते और ब्राह्मणों को भोजन कराते हुए आगे बढ़ना। उन्‍होंने भी इसी तरह करते हुए जा रहे थे कि रास्‍ते में एक राजकुमारी का विवाह था। जिससे उसका विवाह होना था वह एक आंख से काना था। तो उसके पिता ने जब अति सुंदर साहूकार के बेटे को देखा तो उनके मन में आया कि क्‍यों न इसे ही घोड़ी पर बिठाकर शादी के सारे कार्य संपन्‍न करा लिये जाएं। तो उन्‍होंने मामा से बात की और कहा कि इसके बदले में वह अथाह धन देंगे तो वह भी राजी हो गए।



इसके बाद साहूकार का बेटा विवाह की बेदी पर बैठा और जब विवाह कार्य संपन्‍न हो गए तो जाने से पहले उसने राजकुमारी की चुंदरी के पल्‍ले पर लिखा कि तेरा विवाह तो मेरे साथ हुआ लेकिन जिस राजकुमार के साथ भेजेंगे वह तो एक आंख का काना है। इसके बाद वह अपने मामा के साथ काशी के लिए चला गया। उधर जब राजकुमार ने अपनी चुनरी पर यह लिखा हुआ पाया तो उसने राजकुमार के साथ जाने से मना कर दिया। तो राजा ने भी अपनी पुत्री को बारात के साथ विदा नहीं किया। बारात वापस लौट गई। उधर मामा और भांजे काशीजी पहुंच गये थे।



एक दिन जब मामा ने यज्ञ रचा रखा था और भांजा बहुत देर तक बाहर नहीं आया तो मामा ने अंदर जाकर देखा तो भांजे के प्राण निकल चुके थे। वह बहुत परेशान हुए लेकिन सोचा कि अभी रोना-पीटना मचाया तो ब्राह्मण चले जाएंगे और यज्ञ का कार्य अधूरा रह जाएगा। जब यज्ञ संपन्‍न हुआ तो मामा ने रोना-पीटना शुरू किया। उसी समय शिव-पार्वती उधर से जा रहे थे तो माता पार्वती ने शिवजी से पूछा हे प्रभु ये कौन रो रहा है? तभी उन्‍हें पता चलता है कि यह तो भोलेनाथ के आर्शीवाद से जन्‍मा साहूकार का पुत्र है।



तब माता पार्वती कहती हैं कि हे स्‍वामी इसे जीवित कर दें अन्‍यथा रोते-रोते इसके माता-पिता के प्राण निकल जाएंगे। तब भोलेनाथ ने कहा कि हे पार्वती इसकी आयु इतनी ही थी सो वह भोग चुका। लेकिन मां के बार-बार आग्रह करने पर भोलेनाथ ने उसे जीवित कर दिया। लड़का ओम नम: शिवाय करते हुए जी उठा और मामा-भांजे दोनों ने ईश्‍वर को धन्‍यवाद दिया और अपनी नगरी की ओर लौटे। रास्‍ते में वही नगर पड़ा और राजकुमारी ने उन्‍हें पहचान लिया तब राजा ने राजकुमारी को साहूकार के बेटे के साथ बहुत सारे धन-धान्‍य के साथ विदा किया।



उधर साहूकार और उसकी पत्‍नी छत पर बैठे थे। उन्‍होंने यह प्रण कर रखा था कि यदि उनका पुत्र सकुशल न लौटा तो वह छत से कूदकर अपने प्राण त्‍याग देंगे। तभी लड़के के मामा ने आकर साहूकार के बेटे और बहू के आने का समाचार सुनाया लेकिन वे नहीं मानें तो मामा ने शपथ पूर्वक कहा त‍ब तो दोनों को विश्‍वास हो गया और दोनों ने अपने बेटे-बहू का स्‍वागत किया। उसी रात साहूकार को स्‍वप्‍न ने शिवजी ने दर्शन दिया और कहा कि तुम्‍हारे पूजन से मैं प्रसन्‍न हुआ। इसी प्रकार जो भी व्‍यक्ति इस कथा को पढ़ेगा या सुनेगा उसके समस्‍त दु:ख दूर हो जाएंगे और मनोवांछ‍ित सभी कामनाओं की पूर्ति होगी।

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Frequently Asked Questions

श्रावण का महीना कब शुरू हो रहा है?
22 जुलाई 2024, सोमवार से श्रावण का महीना प्रारंभ होगा।
इस साल श्रावण में क्या खास है?
इस साल श्रावण में पांच सोमवार पड़ रहे हैं, जो बहुत शुभ माना जाता है। साथ ही, श्रावण सोमवार से शुरू होकर सोमवार को ही खत्म हो रहा है, जो दुर्लभ संयोग है।
श्रावण में कौन से व्रत और त्यौहार मनाए जाते हैं?
श्रावण में हर सोमवार को सावन सोमवार का व्रत रखा जाता है। इसके अलावा, हरियाली अमावस्या, नाग पंचमी, कंकड़ आरती और रक्षाबंधन जैसे प्रमुख त्यौहार भी इसी महीने में आते हैं।
श्रावण का भगवान शिव से क्या संबंध है?
श्रावण का महीना भगवान शिव को अति प्रिय है। ऐसा माना जाता है कि इस महीने में उनकी पूजा करने से विशेष फल प्राप्त होते हैं। कांवड़ यात्रा भी इसी महीने में शिव की भक्ति के लिए की जाती है।
श्रावण मास का महत्व क्या है?
श्रावण का धार्मिक, पौराणिक, कृषि और सांस्कृतिक महत्व है। यह महीना भगवान शिव की आराधना, मनोकामना पूर्ति, अच्छी फसल और प्रकृति के सौंदर्य का प्रतीक है।

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