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Wednesday, 2025 March 12
षटतिला एकादशी संपूर्ण व्रत कथा
Updates / 2025/01/24

षटतिला एकादशी संपूर्ण व्रत कथा

षटतिला एकादशी हिन्दू धर्म में एक महत्वपूर्ण व्रत है, जो खासतौर पर माघ माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी को मनाया जाता है। इस दिन विशेष रूप से तिलों और तेल का दान किया जाता है, और भगवान श्री विष्णु की पूजा अर्चना की जाती है। यह व्रत विशेष रूप से पुण्य और मोक्ष के लिए किया जाता है। इस ब्लॉग में हम षटतिला एकादशी व्रत कथा, महत्व, पूजा विधि और इसके लाभ के बारे में विस्तार से जानेंगे।

षटतिला एकादशी व्रत कथा

युधिष्ठिर ने पूछा- जगन्नाथ ! श्रीकृष्ण ! आदिदेव ! जगत्पते ! माघ मासके कृष्ण पक्षमै कौन-सी एकादशी होती है ? उसके लिये कैसी विधि है ? तथा उसका फल क्या है ? महाप्राप्न ! कृपा करके ये सब बातें बताइये ।

श्रीभगवान् बोले- नृपश्रेष्ठ ! सुनो, माघ मास के कृष्ण पक्षकी जो एकादशी है, वह 'षट्तिला' के नामसे विख्यात है, जो सब पापोंका नाश करने वाली है। अब तुम 'षर्तिला'की पापहारिणी कथा सुनो, जिसे मुनिश्रेष्ठ पुलस्त्यने दाल्भ्य से कहा था। दाल्भ्यने पूछा - ब्रहान् ! मृत्यु लोक में आये हुए प्राणी प्रायः पापकर्म करते हैं। उन्हें नरकमें न जाना पड़े. इसके लिये कौन-सा उपाय है ? बताने की कृपा करें।

पुलस्त्यजी बोले - महाभाग ! तुमने बहुत अच्छी बात पूछी है, बतलाता हूं: सुनो। माघ मास आनेपर मनुष्यको चाहिये कि वह नहा-धोकर पवित्र हो इन्द्रियों को संयम में रखते हुए काम, क्रोध, अहंकार, लोभ और चुगली आदि बुराइयोंको त्याग दे। देवाधिदेव ! भगवान्का स्मरण करके जलसे पैर घोकर भूमिपर पड़े हुए गोबरका संग्रह करे। उसमें तिल और कपास छोड़कर एक सौ आठ पिंडिकाएं बनाए। फिर माघ में जब आर्दा या मूल नक्षत्र आये, तब कृष्ण पक्ष की एकादशी करनेके लिये नियम ग्रहण करे। भलीभांति स्नान करके पवित्र हो शुद्धभावसे देवाधिदेव श्रीविष्णु की पूजा करे। कोई भूल हो जानेपर श्रीकृष्ण का नामोच्चारण करे। रात को जागरण और होम करे। चन्दन, अरगजा, कपूर, नैवेद्य आदि सामग्री से शंख, चक्र और गदा धारण करने वाले देवदेवेश्वर श्रीहरि की पूजा करे। तत्पश्चात भगवान का स्मरण करके बारम्बार श्रीकृष्ण नाम का उच्चारण करते हुए कुम्हड़े, नारियल अथवा बिजौरके फलसे भगवान को विधिपूर्वक पूजकर अर्घ्य दे। अन्य सब सामग्रियों के अभाव में सौ सुपारियोंके द्वारा भी पूजन और अर्घ्यदान किए जा सकते हैं। 

अर्घ्य का मन्त्र इस प्रकार है-कृष्ण कृष्ण कृपालुस्त्वमगतीनां गतिर्भव। संसारार्णवमनानां प्रसीद पुरुषोत्तम॥ नमस्ते पुण्डरीकाक्ष नमस्ते विश्वभावन । सुब्रहाण्य नमस्तेऽस्तु महापुरुष पूर्वज ॥ गृहाणार्यं मया दत्तं लक्ष्म्या सह जगत्पते ।

'सच्चिदानन्दस्वरूप श्रीकृष्ण ! आप बड़े दयालु हैं। हम आश्रयहीन जीवों के आप आश्रयदाता होइये। पुरुषोत्तम ! हम संसार-समुद्रमे डूब रहे है, आप हमपर प्रसत्र होइये। कमलनयन ! आपको नमस्कार है, विश्वभावन ! आपको नमस्कार है। सुब्रह्मण्य ! महापुरुष ! सबके पूर्वज ! आपको नमस्कार है।

जगत्पते ! आप लक्ष्मीजी के साथ मेरा दिया हुआ अर्थ स्वीकार करें।'

तत्पश्चात् ब्राह्मण की पूजा करे। उसे जलका बड़ा दान करे। साथ ही छाता, जूता और वस्त्र भी दे। दान करते समय ऐसा कहे - 'इस दानके द्वारा भगवान् श्रीकृष्ण मुझपर प्रसन्न हों।' अपनी शक्ति के अनुसार श्रेष्ठ ब्राह्मण को काली गौ दान करे। द्विजश्रेष्ठ ! विद्वान् पुरुष को चाहिये कि वह तिलसे भरा हुआ पात्र भी दान करे। उन तिलोंके बोनेपर उनसे जितनी शाखाएं पैदा हो सकती है, उतने हजार वर्षीतक वह स्वर्ग लोक में प्रतिष्ठित होता है। तिलसे स्नान करे, तिलका उबटन लगाये, तिल से होम करे; तिल मिलाया हुआ जल पिये, तिलका दान करे और तिल को भोजन के काम में ले। इस प्रकार छः कामों में तिल का उपयोग करने से यह एकादशी 'षट्तिला' कहलाती है, जो सब पापों का नाश करने वाली है।

षटतिला एकादशी का महत्व

षटतिला एकादशी व्रत का महत्व शास्त्रों में विशेष रूप से बताया गया है। इस दिन तिलों का दान और तेल का दान पुण्य की प्राप्ति का कारण बनता है। इस व्रत के पालन से व्यक्ति के सारे पाप समाप्त हो जाते हैं और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। यह व्रत विशेष रूप से संतान सुख की प्राप्ति, स्वास्थ्य लाभ, और जीवन में खुशहाली लाने के लिए किया जाता है।

षटतिला एकादशी पूजा विधि

षटतिला एकादशी व्रत की पूजा विधि को सही तरीके से करना बहुत महत्वपूर्ण होता है। निम्नलिखित पूजा विधि को अपनाकर आप इस व्रत को विधिपूर्वक कर सकते हैं:

स्नान और शुद्धता: व्रत को प्रारंभ करने से पहले उबटन से स्नान करें और पूरे दिन शुद्ध रहें।
भगवान विष्णु की पूजा: इस दिन विशेष रूप से भगवान श्री विष्णु की पूजा करनी चाहिए। उनके चरणों में तिल और तेल का चढ़ावा चढ़ाएं।
तिल दान: तिलों का दान विशेष रूप से इस दिन करना चाहिए। तिल का दान करने से पुण्य की प्राप्ति होती है।
उपवासी रहना: षटतिला एकादशी के दिन उपवासी रहकर व्रत का पालन करना चाहिए।
सन्ध्या पूजा: सन्ध्या समय में भगवान विष्णु की आरती और मंत्रोच्चारण करें।

षटतिला एकादशी के लाभ

पाप नाश: इस व्रत के पालन से व्यक्ति के सभी पाप समाप्त हो जाते हैं।
संतान सुख: संतान प्राप्ति के इच्छुक लोग इस व्रत को करते हैं और भगवान विष्णु की कृपा से उन्हें संतान सुख प्राप्त होता है।
मोक्ष की प्राप्ति: यह व्रत व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति दिलवाने में सहायक होता है।
समस्याओं का समाधान: घर में किसी भी प्रकार की समस्याओं का समाधान करने के लिए भी यह व्रत किया जाता है।
स्वास्थ्य लाभ: इस व्रत के परिणामस्वरूप शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य में भी सुधार होता है।

षटतिला एकादशी व्रत का पालन करने से न केवल व्यक्ति के पाप समाप्त होते हैं, बल्कि उसे जीवन में सुख, समृद्धि और मोक्ष की प्राप्ति भी होती है। इस दिन तिल और तेल का दान विशेष रूप से पुण्यकारी होता है। अगर आप भी इस व्रत को विधिपूर्वक करते हैं, तो आपके जीवन में खुशहाली और आशीर्वाद की कोई कमी नहीं रहेगी।


Frequently Asked Questions

षटतिला एकादशी कब मनाई जाती है?
षटतिला एकादशी माघ माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी को मनाई जाती है।
षटतिला एकादशी का व्रत क्यों किया जाता है?
यह व्रत पुण्य, मोक्ष और संतान सुख के लिए किया जाता है।
षटतिला एकादशी पर क्या विशेष पूजा करनी चाहिए?
भगवान श्री विष्णु की पूजा करें, तिल और तेल का दान करें, और उपवासी रहकर व्रत का पालन करें।
षटतिला एकादशी का धार्मिक महत्व क्या है?
इस व्रत का महत्व पाप नाश, संतान सुख और मोक्ष की प्राप्ति से जुड़ा हुआ है।
इस व्रत के पालन से क्या लाभ होता है?
इस व्रत के पालन से पापों का नाश होता है, संतान सुख मिलता है, और मानसिक शांति प्राप्त होती है।

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