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तंत्र साधना मे दस महाविद्या कोनसी है, कैसे हुई उत्पत्ति, उनके मंत्र, उनकी दिशा और जानिए उनके पति के नाम विस्तार से
Updates / 2024/07/06

तंत्र साधना मे दस महाविद्या कोनसी है, कैसे हुई उत्पत्ति, उनके मंत्र, उनकी दिशा और जानिए उनके पति के नाम विस्तार से

भारत में तंत्र साधना का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। ये दस महाविद्याएं देवी शक्ति के दस रूप हैं, जिन्हें तंत्र परंपरा में विशेष महत्व दिया गया है। ये देवी विभिन्न स्वरूपों में प्रकट होती हैं और इन्हें विभिन्न शक्तियों और सिद्धियों का प्रतिनिधित्व करने वाला माना जाता है। इन दस महाविद्याओं के नाम हैं: काली, तारा, षोडशी (त्रिपुरसुंदरी), भुवनेश्वरी, भैरवी, छिन्नमस्ता, धूमावती, बगलामुखी, मातंगी और कमला। इन सभी महाविद्याओं की अपनी अलग-अलग विशेषताएँ, प्रतीक और साधना विधियाँ हैं। आइए, हम इनके बारे में विस्तार से जानें।



10 महाविद्याओं के नाम


1. काली
काली महाविद्या सबसे प्रमुख और पूज्यनीय देवी मानी जाती हैं। वे समय की देवी हैं और उन्हें संहारक शक्ति का प्रतीक माना जाता है। काली का स्वरूप बहुत ही भयानक होता है, उनके चार हाथ होते हैं जिनमें वे खड्ग, खप्पर, अभय मुद्रा और वर मुद्रा धारण करती हैं। उनका कंठ नरमुण्डों की माला से सुसज्जित होता है और उनके चारों ओर अंधकार व्याप्त रहता है। काली की पूजा और साधना से साधक को भयमुक्ति, आत्मशक्ति और असाधारण बल प्राप्त होता है।



2. तारा


तारा देवी को नवग्रहों की स्वामिनी माना जाता है और वे शाक्त साधना में एक महत्वपूर्ण स्थान रखती हैं। तारा का रंग नीला होता है और वे अपने साधकों को ज्ञान, विवेक और शांति प्रदान करती हैं। तारा देवी की पूजा से साधक को सांसारिक बंधनों से मुक्ति मिलती है और वह आध्यात्मिक उन्नति की ओर अग्रसर होता है। तारा देवी की साधना विशेष रूप से उन लोगों के लिए लाभकारी होती है जो अपनी आत्मा की खोज में लगे होते हैं।



3. षोडशी (त्रिपुरसुंदरी)
षोडशी, जिन्हें त्रिपुरसुंदरी भी कहा जाता है, सौंदर्य और प्रेम की देवी हैं। वे सोलह वर्ष की अल्हड़ बालिका के रूप में प्रकट होती हैं और उनके तीन नेत्र होते हैं। षोडशी की पूजा से साधक को आत्मिक सौंदर्य, मानसिक शांति और भौतिक सुख-समृद्धि प्राप्त होती है। त्रिपुरसुंदरी का स्वरूप अति मनोहर और आकर्षक होता है, और वे ब्रह्मांड की रचना, स्थिति और संहार की अधिष्ठात्री मानी जाती हैं।



4. भुवनेश्वरी
भुवनेश्वरी देवी को ब्रह्मांड की अधिष्ठात्री देवी माना जाता है। वे समस्त जगत की माँ हैं और उनकी कृपा से समस्त जीवधारी अपनी जीविका प्राप्त करते हैं। भुवनेश्वरी का स्वरूप बहुत ही सौम्य और शांतिपूर्ण होता है। उनकी पूजा से साधक को शक्ति, समृद्धि और स्वास्थ्य प्राप्त होता है। भुवनेश्वरी देवी की साधना विशेष रूप से उन लोगों के लिए लाभकारी होती है जो अपने जीवन में संतुलन और समृद्धि की इच्छा रखते हैं।



5. भैरवी
भैरवी देवी को तंत्र साधना की प्रमुख देवी माना जाता है। वे भैरव की शक्ति हैं और उन्हें अघोर साधना की देवी माना जाता है। भैरवी का स्वरूप भयानक होता है और वे अपने साधकों को तंत्र साधना में सफलता और सिद्धियों की प्राप्ति कराती हैं। भैरवी की पूजा से साधक को भय, रोग और शत्रुओं से मुक्ति मिलती है। भैरवी देवी की साधना उन साधकों के लिए विशेष रूप से लाभकारी होती है जो तंत्र साधना में उच्च कोटि की सिद्धियाँ प्राप्त करना चाहते हैं।



6. छिन्नमस्ता
छिन्नमस्ता देवी का स्वरूप अद्वितीय और अद्भुत होता है। वे स्वयं अपना सिर काटकर उसे हाथ में धारण करती हैं और उनके गले से रक्त प्रवाहित होता है। छिन्नमस्ता की पूजा से साधक को आत्मबल, साहस और मानसिक शांति प्राप्त होती है। वे जीवन-मृत्यु के चक्र को नियंत्रित करने वाली देवी मानी जाती हैं और उनकी साधना से साधक को भौतिक और आध्यात्मिक दोनों ही क्षेत्रों में उच्चतम सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं।



7. धूमावती
धूमावती देवी को विधवा देवी माना जाता है और उनका स्वरूप बहुत ही भयानक होता है। वे दरिद्रता, विध्वंस और अकाल की देवी हैं, लेकिन उनकी पूजा से साधक को सांसारिक मोह-माया से मुक्ति मिलती है। धूमावती की साधना से साधक को आत्मज्ञान और मोक्ष की प्राप्ति होती है। वे उन साधकों के लिए विशेष रूप से लाभकारी होती हैं जो अपनी आध्यात्मिक यात्रा में आगे बढ़ना चाहते हैं और सांसारिक बंधनों से मुक्त होना चाहते हैं।



8. बगलामुखी
बगलामुखी देवी को वाग्देवी और स्तंभन की देवी माना जाता है। वे अपने शत्रुओं की वाणी को रोकने और उन्हें पराजित करने की शक्ति प्रदान करती हैं। बगलामुखी की पूजा से साधक को वाक्सिद्धि, शत्रुनाश और न्याय की प्राप्ति होती है। उनकी साधना विशेष रूप से उन लोगों के लिए लाभकारी होती है जो न्यायालयीन मामलों में फंसे होते हैं या अपने शत्रुओं से परेशान होते हैं।



9. मातंगी
मातंगी देवी को विद्या और संगीत की देवी माना जाता है। वे कला, साहित्य और संगीत में सिद्धि प्रदान करती हैं। मातंगी का स्वरूप अति मनोहर होता है और उनकी पूजा से साधक को ज्ञान, विद्या और कला में प्रवीणता प्राप्त होती है। मातंगी देवी की साधना विशेष रूप से उन लोगों के लिए लाभकारी होती है जो शिक्षा, संगीत और कला के क्षेत्र में उन्नति करना चाहते हैं।



10. कमला
कमला देवी को धन, समृद्धि और सौभाग्य की देवी माना जाता है। वे लक्ष्मी का ही एक रूप हैं और उनकी पूजा से साधक को धन, ऐश्वर्य और सौभाग्य की प्राप्ति होती है। कमला का स्वरूप अति सौम्य और मनोहर होता है और उनकी साधना से साधक को आर्थिक समृद्धि और जीवन में संतुलन की प्राप्ति होती है।



कैसे हुई दस महाविद्याओ की उत्पत्ति 

श्री देवीभागवत पुराण के अनुसार महाविद्याओं की उत्पत्ति भगवान शिव और उनकी पत्नी सती, जो कि पार्वती का पूर्वजन्म थीं, के बीच एक विवाद के कारण हुई। जब शिव और सती का विवाह हुआ तो सती के पिता दक्ष प्रजापति दोनों के विवाह से खुश नहीं थे। उन्होंने शिव का अपमान करने के उद्देश्य से एक विशाल यज्ञ का आयोजन किया, जिसमें उन्होंने सभी देवी-देवताओं को आमन्त्रित किया लेकिन द्वेषवश उन्होंने अपने जामाता भगवान शंकर और अपनी पुत्री सती को निमन्त्रित नहीं किया। सती, पिता के द्वारा आयोजित यज्ञ में जाने की जिद करने लगीं जिसे शिव ने अनसुना कर दिया, इस पर सती ने स्वयं को एक भयानक रूप में परिवर्तित (महाकाली का अवतार) कर लिया। जिसे देख भगवान शिव भागने को उद्यत हुए। अपने पति को डरा हुआ जानकर माता सती उन्हें रोकने लगीं तो शिव जिस दिशा में गये उस दिशा में माँ का एक अन्य विग्रह प्रकट होकर उन्हें रोकता है। इस प्रकार दसों दिशाओं में माँ ने वे दस रूप लिए थे वे ही दस महाविद्याएँ कहलाईं।

महाविद्याओं के स्वामी अथवा पति

  1. महाकाली - महाकाल
  2. तारा - तारकेश्वर
  3. बाला भुवनेशा - बाल भुवनेश
  4. षोडशी विद्येशा - षोडश विद्येश
  5. भैरवी - भैरव
  6. छिन्नमस्तिका - छिन्नमस्तक
  7. धूमावती - द्युमवान
  8. बगलामुखी - बगलामुख
  9. मातंगी - मातंग
  10. कमला - कमल

देवी (शक्ति) के 10 रूप – दिशा

1- काली मां – उत्तर दिशा
2- तारा देवी – उत्तर दिशा
3- श्री विद्या (षोडशी-त्रिपुर सुंदरी) – ईशान दिशा
4- देवी भुवनेश्वरी – पश्चिम दिशा
5- श्री त्रिपुर भैरवी – दक्षिण दिशा
6- माता छिन्नमस्ता – पूर्व दिशा
7- भगवती धूमावती – पूर्व दिशा
8- माता बगला (बगलामुखी) – दक्षिण दिशा
9- भगवती मातंगी – वायव्य दिशा
10- माता श्री कमला – नैऋत्य दिशा

10 महाविद्याओ के मंत्र 

काली मंत्र-
ऊँ क्रीं क्रीं क्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं हूं हूं दक्षिण कालिके क्रीं क्रीं क्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं हूं हूं स्वाहा।।

तारा मंत्र-
ऐं ऊँ ह्रीं क्रीं हूं फट्।।

छिन्नमस्तिका मंत्र-
श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं वज्रवैरोचनीयै हूं हूं फट् स्वाहा।।

षोडशी मंत्र-
ऊँ ऐं ह्रीं श्रीं क ए ह ल ह्रीं ह स क ह ल ह्रीं स क ल ह्रीं महाज्ञानमयी विद्या षोडशी मॉं सदा अवतु।।



भुवनेश्वरी मंत्र-
ऐं ह्रीं श्रीं।।

त्रिपुर भैरवी मंत्र-
हस्त्रौं हस्क्लरीं हस्त्रौं।।

धूमावती मंत्र-
धूं धूं धूमावती ठः ठः।।

बगलामुखी मंत्र-
ऊँ ह्रीं बगलामुखी सर्वदुष्टानाम् वाचं मुखं पदं स्तम्भय-स्तम्भय जिह्वा कीलय-कीलय बुद्धि विनाशाय-विनाशाय ह्रीं ऊँ स्वाहा।।

मातंगी मंत्र-
ऊँ ह्रीं क्लीं हूं मातंग्यै फट् स्वाहा।।

कमला मंत्र-
ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं सौः जगत्प्रसूत्यै नमः।।

Tags-भारत में तंत्र साधना का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। ये दस महाविद्याएं देवी शक्ति के दस रूप हैं, जिन्हें तंत्र परंपरा में विशेष महत्व दिया गया है। ये देवी विभिन्न स्वरूपों में प्रकट होती हैं और इन्हें विभिन्न शक्तियों और सिद्धियों का प्रतिनिधित्व करने वाला माना जाता है। इन दस महाविद्याओं के नाम हैं: काली, तारा, षोडशी (त्रिपुरसुंदरी), भुवनेश्वरी, भैरवी, छिन्नमस्ता, धूमावती, बगलामुखी, मातंगी और कमला। इन सभी महाविद्याओं की अपनी अलग-अलग विशेषताएँ, प्रतीक और साधना विधियाँ हैं। आइए, हम इनके बारे में विस्तार से जानें


Frequently Asked Questions

दस महाविद्याएं कौन-कौन सी हैं?
दस महाविद्याएं हैं: काली, तारा, षोडशी (त्रिपुरसुंदरी), भुवनेश्वरी, भैरवी, छिन्नमस्ता, धूमावती, बगलामुखी, मातंगी और कमला।
काली महाविद्या का महत्व क्या है?
काली महाविद्या संहारक शक्ति का प्रतीक हैं और उनकी पूजा से साधक को भयमुक्ति, आत्मशक्ति और असाधारण बल प्राप्त होता है।
तारा देवी की साधना से क्या लाभ होते हैं?
तारा देवी की साधना से साधक को ज्ञान, विवेक और शांति प्राप्त होती है, और वह आध्यात्मिक उन्नति की ओर अग्रसर होता है।
भुवनेश्वरी देवी की पूजा से क्या प्राप्त होता है?
भुवनेश्वरी देवी की पूजा से साधक को शक्ति, समृद्धि और स्वास्थ्य प्राप्त होता है, और वे अपने जीवन में संतुलन और समृद्धि की इच्छा रखते हैं।
मातंगी देवी का स्वरूप और उनका महत्व क्या है?
मातंगी देवी को विद्या और संगीत की देवी माना जाता है। उनकी पूजा से साधक को ज्ञान, विद्या और कला में प्रवीणता प्राप्त होती है।

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