घालीन लोटांगण, वंदीन चरण लिरिक्स हिंदी मे
पहले इस भजन का यह डिज़ाइन संत नामदेव का है। इस प्रथम वाक्य का अर्थ और समर्पण बताना आवश्यक नहीं है। इसका अर्थ बहुत ही सरल और समझने में आसान है। संत नामदेव (1270 ई.-1350 ई.) वारकरी संप्रदाय के महान संत-कवि हुए। संत नामदेव ने अपना बचपन पंढरपुर क्षेत्र में बिताया, इसलिए बचपन में ही नामदेव के मन में विट्ठल भक्ति का संचार हो गया। संत नामदेव ने कीर्तन के माध्यम से भागवत धर्म की पताका को पंजाब तक पहुंचाया। लगभग 2500 अभंगों से युक्त उनकी 'अभंग गाथा' प्रसिद्ध है। उन्होंने हिन्दी के 125 छंदों की भी रचना की है। उनकी 62 काव्य रचनाएँ सिखों के गुरु ग्रंथ साहिब में शामिल हैं।
घालीन लोटांगण, वंदीन चरण ।
डोळ्यांनी पाहीन रुप तुझें ।
प्रेमें आलिंगिन, आनंदे पूजिन ।
भावें ओवाळीन म्हणे नामा ॥१॥
त्वमेव माता च पिता त्वमेव ।
त्वमेव बंधुक्ष्च सखा त्वमेव ।
त्वमेव विध्या द्रविणं त्वमेव ।
त्वमेव सर्वं मम देवदेव ॥२॥
कायेन वाचा मनसेंद्रीयेव्रा, बुद्धयात्मना वा प्रकृतिस्वभावात ।
करोमि यध्य्त सकलं परस्मे, नारायणायेति समर्पयामि ॥३॥
अच्युतं केशवं रामनारायणं कृष्णदामोदरं वासुदेवं भजे ।
श्रीधरं माधवं गोपिकावल्लभं, जानकीनायकं रामचंद्र भजे ॥४॥
हरे राम हरे राम, राम राम हरे हरे ।
हरे कृष्ण हरे कृष्ण, कृष्ण कृष्ण हरे हरे ।
हरे राम हरे राम, राम राम हरे हरे ।
हरे कृष्ण हरे कृष्ण, कृष्ण कृष्ण हरे हरे ।
हरे राम हरे राम, राम राम हरे हरे ।
हरे कृष्ण हरे कृष्ण, कृष्ण कृष्ण हरे हरे ।
गणपती बाप्पा मोरया
मंगलमुरती मोरया
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