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Devshayani Ekadashi 2024: देवशयनी एकादशी 2024 तारीख और मुर्हुत
Updates / 2024/07/13

Devshayani Ekadashi 2024: देवशयनी एकादशी 2024 तारीख और मुर्हुत

देवशयनी एकादशी, जिसे हरिशयनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है, हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण व्रत के रूप में मनाई जाती है। यह आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाई जाती है। 2024 में, देवशयनी एकादशी 17 जुलाई को पड़ेगी। व्रत का पारण, जो कि व्रत तोड़ने की प्रक्रिया होती है, अगले दिन यानी 18 जुलाई को किया जाएगा।



देवशयनी एकादशी का महत्त्व

देवशयनी एकादशी का विशेष महत्त्व है क्योंकि यह वह दिन है जब भगवान विष्णु क्षीरसागर में योगनिद्रा में जाते हैं। यह चार महीने की अवधि, जिसे 'चातुर्मास' कहा जाता है, भगवान विष्णु की निद्रा की अवधि मानी जाती है। इस समय के दौरान, भगवान शिव और देवी पार्वती की पूजा का विशेष महत्व होता है।


यह व्रत भक्तों के लिए अत्यंत पुण्यदायी माना जाता है। देवशयनी एकादशी से लेकर देवउठनी एकादशी तक के चार महीने को अशुभ माना जाता है और इस दौरान विवाह, गृहप्रवेश और अन्य शुभ कार्यों को करने की मनाही होती है।

देवशयनी एकादशी व्रत 2024 का पारण का समय

एकादशी व्रत का पारण अगले दिन सूर्योदय के बाद किया जाता है। एकादशी व्रत का पारण द्वादशी तिथि समाप्त होने से पहले करना चाहिए। बता दें कि देवशयनी एकादशी का पारण 18 जुलाई को किया जाएगा। देवशयनी एकादशी का पारण का सही समय 18 जुलाई को सुबह 5 बजकर 35 मिनट से सुबह 8 बजकर 20 मिनट के बीच रहेगा। द्वादशी तिथि समाप्त 18 जुलाई को सुबह 8 बजकर 44 मिनट पर होगा।


व्रत विधि

देवशयनी एकादशी के दिन व्रत रखने वाले भक्त ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करते हैं और भगवान विष्णु की पूजा करते हैं। व्रत रखने वाले दिनभर अन्न और जल का सेवन नहीं करते और भगवान विष्णु की कथा सुनते हैं। रात में जागरण करते हैं और भजन-कीर्तन करते हैं। अगले दिन पारण के साथ व्रत का समापन करते हैं।

व्रत की तैयारी के लिए एक दिन पहले दशमी तिथि को सात्विक भोजन किया जाता है। एकादशी के दिन स्नान के बाद भगवान विष्णु की मूर्ति या चित्र के सामने दीपक जलाया जाता है और पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद और शक्कर) से अभिषेक किया जाता है। तत्पश्चात भगवान विष्णु को पीले वस्त्र अर्पित किए जाते हैं और तुलसी के पत्तों के साथ नैवेद्य चढ़ाया जाता है।


पौराणिक कथा

देवशयनी एकादशी के साथ कई पौराणिक कथाएँ जुड़ी हुई हैं। इनमें से एक कथा के अनुसार, सत्ययुग में मांधाता नामक एक राजा थे जिनके राज्य में अत्यधिक सूखा पड़ गया था। सूखे से परेशान होकर राजा ने महर्षि अंगिरा से उपाय पूछा। महर्षि ने राजा को देवशयनी एकादशी का व्रत करने की सलाह दी। राजा मांधाता ने पूरे श्रद्धा और विधिपूर्वक इस व्रत का पालन किया, जिसके फलस्वरूप उनके राज्य में बारिश हुई और सभी कष्ट दूर हो गए।

व्रत के लाभ

देवशयनी एकादशी व्रत के अनगिनत लाभ माने जाते हैं। यह व्रत व्यक्ति के सभी पापों का नाश करता है और उसे मोक्ष की प्राप्ति कराता है। इसके साथ ही, इस व्रत के पालन से जीवन में सुख-शांति, समृद्धि और आरोग्यता आती है।



इस व्रत के दौरान व्यक्ति को सत्य, अहिंसा और ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए। इसके अतिरिक्त, इस दिन दान-पुण्य का विशेष महत्त्व होता है। व्रत करने वाले भक्तों को अन्न, वस्त्र, धन और अन्य आवश्यक वस्तुओं का दान करना चाहिए। इससे भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है और जीवन के कष्टों से मुक्ति मिलती है।

समापन

देवशयनी एकादशी का व्रत हिन्दू धर्म में विशेष स्थान रखता है। यह व्रत भगवान विष्णु की कृपा पाने का श्रेष्ठ माध्यम है और इसे पूरे विधि-विधान के साथ करने से व्यक्ति को अनगिनत पुण्य लाभ प्राप्त होते हैं। 2024 में देवशयनी एकादशी 17 जुलाई को मनाई जाएगी, इसलिए इस पवित्र दिन का महत्व समझते हुए पूरे श्रद्धा और विश्वास के साथ व्रत का पालन करना चाहिए।

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Frequently Asked Questions

देवशयनी एकादशी कब मनाई जाती है?
देवशयनी एकादशी आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाई जाती है। 2024 में, यह 17 जुलाई को मनाई जाएगी।
देवशयनी एकादशी का क्या महत्व है?
देवशयनी एकादशी का महत्व है क्योंकि इस दिन भगवान विष्णु योगनिद्रा में जाते हैं। इस दिन व्रत रखने से पापों का नाश होता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
देवशयनी एकादशी का व्रत कैसे रखा जाता है?
व्रत के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करें, भगवान विष्णु की पूजा करें, दिनभर अन्न और जल का त्याग करें, और रात में जागरण कर भजन-कीर्तन करें। अगले दिन पारण करें।
चातुर्मास का क्या महत्व है?
चातुर्मास चार महीने की वह अवधि है जब भगवान विष्णु योगनिद्रा में होते हैं। इस समय में शुभ कार्यों का आयोजन नहीं किया जाता और धार्मिक अनुष्ठान किए जाते हैं।
देवशयनी एकादशी के व्रत के लाभ क्या हैं?
इस व्रत से पापों का नाश होता है, मोक्ष की प्राप्ति होती है, जीवन में सुख-शांति और समृद्धि आती है। साथ ही, यह व्रत आरोग्यता प्रदान करता है।

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