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Monday, 2024 December 02
देवशयनी एकादशी व्रत कथा / Devshayani Ekadashi Vrat Katha
Updates / 2024/07/13

देवशयनी एकादशी व्रत कथा / Devshayani Ekadashi Vrat Katha

देवशयनी एकादशी का महत्व: देवशयनी एकादशी हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण और पवित्र दिन है। इसे आषाढ़ शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन को 'पद्मा एकादशी' और 'हरिशयनी एकादशी' के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन का विशेष महत्त्व इसलिए है क्योंकि इस दिन से भगवान विष्णु चार महीने के लिए क्षीरसागर में शयन करते हैं, जिसे 'चातुर्मास' कहा जाता है।



ऐसा माना जाता है कि इस दिन व्रत रखने और भगवान विष्णु की पूजा करने से भक्तों को विशेष फल प्राप्त होते हैं। इस व्रत के पालन से सभी प्रकार के पाप और दुखों का नाश होता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है। देवशयनी एकादशी के दिन से ही चातुर्मास की शुरुआत होती है, जो चार महीने तक चलता है। इस दौरान भगवान विष्णु योगनिद्रा में रहते हैं। इस समय को विशेष पूजा, तप और साधना का समय माना जाता है।


इस दिन भक्त उपवास रखते हैं और भगवान विष्णु की पूजा करते हैं। व्रत की शुरुआत दशमी तिथि की रात्रि से होती है और एकादशी तिथि को व्रत का पालन किया जाता है। पूजा के दौरान भगवान विष्णु के स्वरूप का ध्यान करते हुए मंत्रों का जाप और भजन-कीर्तन किया जाता है।



देवशयनी एकादशी व्रत कथा

धर्मराज युधिष्ठिर ने कहा: हे केशव! आषाढ़ शुक्ल एकादशी का क्या नाम है? इस व्रत के करने की विधि क्या है और किस देवता का पूजन किया जाता है? श्रीकृष्ण कहने लगे कि हे युधिष्ठिर! जिस कथा को ब्रह्माजी ने नारदजी से कहा था वही मैं तुमसे कहता हूँ।


एक बार देवऋषि नारदजी ने ब्रह्माजी से इस एकादशी के विषय में जानने की उत्सुकता प्रकट की, तब ब्रह्माजी ने उन्हें बताया: सतयुग में मांधाता नामक एक चक्रवर्ती सम्राट राज्य करते थे। उनके राज्य में प्रजा बहुत सुखी थी। किंतु भविष्य में क्या हो जाए, यह कोई नहीं जानता। अतः वे भी इस बात से अनभिज्ञ थे कि उनके राज्य में शीघ्र ही भयंकर अकाल पड़ने वाला है।

उनके राज्य में पूरे तीन वर्ष तक वर्षा न होने के कारण भयंकर अकाल पड़ा। इस अकाल से चारों ओर त्राहि-त्राहि मच गई। धर्म पक्ष के यज्ञ, हवन, पिंडदान, कथा-व्रत आदि में कमी हो गई। जब मुसीबत पड़ी हो तो धार्मिक कार्यों में प्राणी की रुचि कहाँ रह जाती है। प्रजा ने राजा के पास जाकर अपनी वेदना की दुहाई दी।

राजा तो इस स्थिति को लेकर पहले से ही दुःखी थे। वे सोचने लगे कि आखिर मैंने ऐसा कौन-सा पाप-कर्म किया है, जिसका दंड मुझे इस रूप में मिल रहा है? फिर इस कष्ट से मुक्ति पाने का कोई साधन करने के उद्देश्य से राजा सेना को लेकर जंगल की ओर चल दिए।

वहाँ विचरण करते-करते एक दिन वे ब्रह्माजी के पुत्र अंगिरा ऋषि के आश्रम में पहुँचे और उन्हें साष्टांग प्रणाम किया। ऋषिवर ने आशीर्वचनोपरांत कुशल क्षेम पूछा। फिर जंगल में विचरने व अपने आश्रम में आने का प्रयोजन जानना चाहा।

तब राजा ने हाथ जोड़कर कहा: महात्मन्‌! सभी प्रकार से धर्म का पालन करता हुआ भी मैं अपने राज्य में दुर्भिक्ष का दृश्य देख रहा हूँ। आखिर किस कारण से ऐसा हो रहा है, कृपया इसका समाधान करें।

यह सुनकर महर्षि अंगिरा ने कहा: हे राजन! सब युगों से उत्तम यह सतयुग है। इसमें छोटे से पाप का भी बड़ा भयंकर दंड मिलता है।



इसमें धर्म अपने चारों चरणों में व्याप्त रहता है। ब्राह्मण के अतिरिक्त किसी अन्य जाति को तप करने का अधिकार नहीं है जबकि आपके राज्य में एक शूद्र तपस्या कर रहा है। यही कारण है कि आपके राज्य में वर्षा नहीं हो रही है। जब तक वह काल को प्राप्त नहीं होगा, तब तक यह दुर्भिक्ष शांत नहीं होगा। दुर्भिक्ष की शांति उसे मारने से ही संभव है।

किंतु राजा का हृदय एक नरपराध शूद्र तपस्वी का शमन करने को तैयार नहीं हुआ।
उन्होंने कहा: हे देव मैं उस निरपराध को मार दूँ, यह बात मेरा मन स्वीकार नहीं कर रहा है। कृपा करके आप कोई और उपाय बताएँ।
महर्षि अंगिरा ने बताया: आषाढ़ माह के शुक्लपक्ष की एकादशी का व्रत करें। इस व्रत के प्रभाव से अवश्य ही वर्षा होगी।

राजा अपने राज्य की राजधानी लौट आए और चारों वर्णों सहित पद्मा एकादशी का विधिपूर्वक व्रत किया। व्रत के प्रभाव से उनके राज्य में मूसलधार वर्षा हुई और पूरा राज्य धन-धान्य से परिपूर्ण हो गया।

ब्रह्म वैवर्त पुराण में देवशयनी एकादशी के विशेष माहात्म्य का वर्णन किया गया है। इस व्रत से प्राणी की समस्त मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं।

Tags-Devshayani Ekadashi Vrat Katha, Devshayani Ekadashi Vrat Katha in hindi


Frequently Asked Questions

देवशयनी एकादशी कब मनाई जाती है?
देवशयनी एकादशी आषाढ़ शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मनाई जाती है।
देवशयनी एकादशी का धार्मिक महत्त्व क्या है?
इस दिन भगवान विष्णु क्षीरसागर में शयन करते हैं और इसे चातुर्मास की शुरुआत माना जाता है। व्रत रखने और पूजा करने से पापों का नाश होता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
चातुर्मास क्या है?
चातुर्मास चार महीने की अवधि है जिसमें भगवान विष्णु योगनिद्रा में रहते हैं। यह समय विशेष पूजा, तप और साधना का होता है।
देवशयनी एकादशी की पूजा विधि क्या है?
इस दिन भक्त उपवास रखते हैं, भगवान विष्णु की पूजा करते हैं, मंत्रों का जाप करते हैं और भजन-कीर्तन करते हैं।
देवशयनी एकादशी की पौराणिक कथा क्या है?
पौराणिक कथा के अनुसार, राजा मान्धाता ने इस व्रत का पालन किया था और इससे उनकी सारी समस्याएं समाप्त हो गई थीं। भगवान विष्णु ने स्वयं इस व्रत के महत्त्व को बताया है।

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