कौन थी भद्रा और क्यों माना जाता है भद्रा को अशुभ?
हिन्दू धर्म में समय और काल का विशेष महत्व है। हर काल का अपना एक महत्व और प्रभाव होता है। इन्हीं में से एक है भद्रा काल, जिसे अत्यधिक अशुभ माना जाता है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि भद्रा कौन थी और क्यों उसका समय इतना अशुभ माना जाता है? आइए जानते हैं इस विषय में विस्तार से।
भद्रा कौन थी?
भद्रा सूर्य देव और उनकी पत्नी छाया की पुत्री थी। भद्रा को 'यमघण्टा' या 'यमगांठी' के नाम से भी जाना जाता है। वह शनिदेव की बहन थी और उसकी प्रकृति अत्यधिक क्रोधी और उग्र थी। भद्रा के स्वभाव के कारण उसे अशुभ माना गया। पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब भद्रा का जन्म हुआ, तो उसने अपने क्रोध और हानिकारक स्वभाव के कारण देवताओं और मनुष्यों को बहुत कष्ट पहुंचाया।
भद्रा का अशुभ प्रभाव
भद्रा को अशुभ इसलिए माना जाता है क्योंकि उसके समय में किए गए कार्यों का परिणाम अक्सर विपरीत और हानिकारक होता है। भद्रा के क्रोधी स्वभाव के कारण उसके काल में किए गए शुभ कार्य जैसे विवाह, गृह प्रवेश, यज्ञ आदि असफल हो जाते हैं या उनका परिणाम विपरीत होता है। इस कारण से भद्रा काल को अशुभ मानकर उससे बचने की सलाह दी जाती है।
भद्रा काल के नियम और महत्व
भद्रा काल के दौरान किसी भी शुभ कार्य को करने की मनाही होती है। विशेष रूप से विवाह, गृह प्रवेश, नामकरण संस्कार, और नए कार्यों की शुरुआत भद्रा काल में नहीं की जाती। यह समय किसी भी महत्वपूर्ण निर्णय के लिए उपयुक्त नहीं होता है। पंचांग में भद्रा काल की जानकारी दी जाती है, और इस काल से बचने के लिए लोग विशेष रूप से सावधान रहते हैं।
भद्रा काल से बचने के उपाय
भद्रा काल के दौरान कोई भी शुभ कार्य करने से बचना चाहिए। यदि भद्रा काल के समय कोई आवश्यक कार्य करना हो, तो भद्रा मुख से बचते हुए भद्रा पुच्छ के समय किया जा सकता है। भद्रा मुख का समय अत्यधिक अशुभ होता है, जबकि भद्रा पुच्छ का समय तुलनात्मक रूप से कम अशुभ माना जाता है।
निष्कर्ष
भद्रा एक पौराणिक पात्र थी जिसका क्रोधी और उग्र स्वभाव उसके समय को अत्यधिक अशुभ बनाता है। हिन्दू धर्म में भद्रा काल का विशेष महत्व है और इससे बचने के लिए पंचांग की सलाह के अनुसार कार्य करना चाहिए। भद्रा काल में कोई भी शुभ कार्य नहीं करना चाहिए ताकि जीवन में सुख और शांति बनी रहे।
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