वैभव लक्ष्मी व्रत एक ऐसा व्रत है जो धन प्राप्ति के लिए किया जाता है। इस व्रत को शुक्रवार के दिन रखा जाता है। इस दिन माताजी की पुजा की जाती है और व्रत रखा जाता है किसी शहर में लाखों लोग रहते थे। सभी अपने-अपने कामों में व्यस्त रहते थे। किसी को किसी की परवाह नहीं थी। भजन-कीर्तन, भक्ति-भाव, दया-माया, परोपकार जैसे संस्कार कम हो गए। शहर में बुराइयां बढ़ गई थीं। शराब, जुआ, रेस, व्यभिचार, चोरी-डकैती आदि बहुत से गुनाह शहर में होते थे। इनके बावजूद शहर में कुछ अच्छे लोग भी रहते थे। ऐसे ही लोगों में शीला और उनके पति की गृहस्थी मानी जाती थी। शीला धार्मिक प्रकृति की और संतोषी स्वभाव वाली थी। उनका पति भी विवेकी और सुशील था। शीला और उसका पति कभी किसी की बुराई नहीं करते थे और प्रभु भजन में अच्छी तरह समय व्यतीत कर रहे थे। शहर के लोग उनकी गृहस्थी की सराहना करते थे। देखते ही देखते समय बदल गया। शीला का पति बुरे लोगों की संगत मे पड़ गया। अब वह जल्द से जल्द करोड़पति बनने के ख्वाब देखने लगा। इसलिए वह गलत रास्ते पर चल पड़ा। उसकी हालत रास्ते पर भटकते भिखारी जैसी हो गई थी। शराब, जुआ, रेस, चरस-गांजा वगैरह बुरी आदतों में शीला का पति भी फंस गया। दोस्तों के साथ उसे भी शराब की आदत हो गई। इस प्रकार उसने अपना सब कुछ रेस-जुएं में गवां दिया। शीला को पति के बर्ताव से बहुत दुःख हुआ, किंतु वह भगवान पर भरोसा कर सबकुछ सहने लगी। वह अपना अधिकांश समय प्रभु भक्ति में बिताने लगी। अचानक एक दिन दोपहर को उनके द्वार पर किसी ने दस्तक दी। शीला ने द्वार खोला तो देखा कि एक मांजी खड़ी थी। उसके चेहरे पर अलौकिक तेज निखर रहा था। उनकी आंखों में से मानो अमृत बह रहा था। उसका भव्य चेहरा करुणा और प्यार से छलक रहा था। उसको देखते ही शीला के मन में अपार शांति छा गई। शीला के रोम-रोम में आनंद छा गया। शीला उस मांजी को आदर के साथ घर में ले आई। घर में बिठाने के लिए कुछ भी नहीं था। अतः शीला ने सकुचाकर एक फटी हुई चद्दर पर उसको बिठाया। मांजी बोलीं- क्यों शीला! मुझे पहचाना नहीं? हर शुक्रवार को लक्ष्मीजी के मंदिर में भजन-कीर्तन के समय मैं भी वहां आती हूं। इसके बावजूद शीला कुछ समझ नहीं पा रही थी। फिर मांजी बोलीं- तुम बहुत दिनों से मंदिर नहीं आईं अतः मैं तुम्हें देखने चली आई। मांजी के अति प्रेम भरे शब्दों से शीला का हृदय पिघल गया। उसकी आंखों में आंसू आ गए और वह बिलख-बिलखकर रोने लगी। मांजी ने कहा- बेटी! सुख और दुःख तो धूप और छांव जैसे होते हैं। धैर्य रखो बेटी! मुझे तेरी सारी परेशानी बता। मांजी के व्यवहार से शीला को काफी संबल मिला और सुख की आस में उसने मांजी को अपनी सारी कहानी कह सुनाई। कहानी सुनकर मांजी ने कहा- कर्म की गति न्यारी होती है। हर इंसान को अपने कर्म भुगतने ही पड़ते हैं। इसलिए तू चिंता मत कर। अब तू कर्म भुगत चुकी है। अब तुम्हारे सुख के दिन अवश्य आएंगे। तू तो मां लक्ष्मीजी की भक्त है। मां लक्ष्मीजी तो प्रेम और करुणा की अवतार हैं। वे अपने भक्तों पर हमेशा ममता रखती हैं। इसलिए तू धैर्य रखकर मां लक्ष्मी जी का व्रत कर। इससे सब कुछ ठीक हो जाएगा। शीला के पूछने पर मांजी ने उसे व्रत की सारी विधि भी बताई। मांजी ने कहा- बेटी! मां लक्ष्मीजी का व्रत बहुत सरल है। उसे वरदलक्ष्मी व्रत या वैभव लक्ष्मी व्रत कहा जाता है। यह व्रत करने वाले की सब मनोकामना पूर्ण होती है। वह सुख-संपत्ति और यश प्राप्त करता है। शीला यह सुनकर आनंदित हो गई। शीला ने संकल्प करके आंखें खोली तो सामने कोई न था। वह विस्मित हो गई कि मांजी कहां गईं? शीला को तत्काल यह समझते देर न लगी कि मांजी और कोई नहीं साक्षात् लक्ष्मीजी ही थीं। दूसरे दिन शुक्रवार था। सवेरे स्नान करके स्वच्छ कपड़े पहनकर शीला ने मांजी द्वारा बताई विधि से पूरे मन से व्रत किया। आखिरी में प्रसाद वितरण हुआ। यह प्रसाद पहले पति को खिलाया। प्रसाद खाते ही पति के स्वभाव में फर्क पड़ गया। उस दिन उसने शीला को मारा नहीं, सताया भी नहीं। शीला को बहुत आनंद हुआ। उनके मन में वैभवलक्ष्मी व्रत के लिए श्रद्धा बढ़ गई।शीला ने पूर्ण श्रद्धा-भक्ति से इक्कीस शुक्रवार तक वैभवलक्ष्मी व्रत किया। इक्कीसवें शुक्रवार को मांजी के कहे मुताबिक उद्यापन विधि कर के सात स्त्रियों को वैभवलक्ष्मी व्रत की सात पुस्तकें उपहार में दीं। फिर माताजी के धनलक्ष्मी स्वरूप की छवि को वंदन करके भाव से मन ही मन प्रार्थना करने लगीं- हे मां धनलक्ष्मी! मैंने आपका वैभवलक्ष्मी व्रत करने की मन्नत मानी थी, वह व्रत आज पूर्ण किया है। हे मां! मेरी हर विपत्ति दूर करो। हमारा सबका कल्याण करो। जिसे संतान न हो, उसे संतान देना। सौभाग्यवती स्त्री का सौभाग्य अखंड रखना। कुंवारी लड़की को मनभावन पति देना। जो आपका यह चमत्कारी वैभव लक्ष्मी व्रत करें, उनकी सब विपत्ति दूर करना। सभी को सुखी करना। हे मां आपकी महिमा अपार है। ऐसा बोलकर लक्ष्मीजी के धनलक्ष्मी स्वरूप की छवि को प्रणाम किया। व्रत के प्रभाव से शीला का पति अच्छा आदमी बन गया और कड़ी मेहनत करके व्यवसाय करने लगा। उसने तुरंत शीला के गिरवी रखे गहने छुड़ा लिए। घर में धन की बाढ़ सी आ गई। घर में पहले जैसी सुख-शांति छा गई। वैभवलक्ष्मी व्रत का प्रभाव देखकर मोहल्ले की दूसरी स्त्रियां भी विधिपूर्वक वैभवलक्ष्मी व्रत करने लगीं। वैभव लक्ष्मी व्रत सात, ग्यारह या इक्कीस, जितने भी शुक्रवारों की मन्नत मांगी हो, उतने शुक्रवार तक यह व्रत पूरी श्रद्धा तथा भावना के साथ करना चाहिए। आखिरी शुक्रवार को इसका शास्त्रीय विधि के अनुसार उद्यापन करना चाहिए। आखिरी शुक्रवार को प्रसाद के लिए खीर बनानी चाहिए। जिस प्रकार हर शुक्रवार को हम पूजन करते हैं, वैसे ही करना चाहिए। पूजन के बाद मां के सामने एक श्रीफल फोड़ें फिर कम से कम सात कुंआरी कन्याओं या सौभाग्यशाली स्त्रियों को कुमकुम का तिलक लगाकर मां वैभवलक्ष्मी व्रत कथा की पुस्तक की एक-एक प्रति उपहार में देनी चाहिए और सबको खीर का प्रसाद देना चाहिए। इसके बाद मां लक्ष्मीजी को श्रद्धा सहित प्रणाम करना चाहिए। फिर माताजी के धनलक्ष्मी स्वरूप की छबि को वंदन करके भाव से मन ही मन प्रार्थना करें- हे मां धनलक्ष्मी! मैंने आपका वैभवलक्ष्मी व्रत करने की मन्नत मानी थी, वह व्रत आज पूर्ण किया है। हे मां हमारी (जो मनोकामना हो वह बोले) मनोकामना पूर्ण करें। हमारी हर विपत्ति दूर करो। हमारा सबका कल्याण करो। जिसे संतान न हो, उसे संतान देना। सौभाग्यवती स्त्री का सौभाग्य अखंड रखना। कुंआरी लड़की को मनभावन पति देना। जो आपका यह चमत्कारी वैभवलक्ष्मी व्रत करे, उनकी सब विपत्ति दूर करना। सभी को सुखी करना। हे मां आपकी महिमा अपार है। आपकी जय हो! ऐसा बोलकर लक्ष्मीजी के धनलक्ष्मी स्वरूप की छबि को प्रणाम करें। ओम जय लक्ष्मी माता, मैया जय लक्ष्मी माता। तुमको निशिदिन सेवत, हरि विष्णु विधाता॥ ओम जय लक्ष्मी माता॥ उमा, रमा, ब्रह्माणी, तुम ही जग-माता। सूर्य-चंद्रमा ध्यावत, नारद ऋषि गाता॥ ओम जय लक्ष्मी माता॥ दुर्गा रुप निरंजनी, सुख सम्पत्ति दाता। जो कोई तुमको ध्यावत, ऋद्धि-सिद्धि धन पाता॥ ओम जय लक्ष्मी माता॥ तुम पाताल-निवासिनि, तुम ही शुभदाता। कर्म-प्रभाव-प्रकाशिनी, भवनिधि की त्राता॥ ओम जय लक्ष्मी माता॥ जिस घर में तुम रहतीं, सब सद्गुण आता। सब सम्भव हो जाता, मन नहीं घबराता॥ ओम जय लक्ष्मी माता॥ तुम बिन यज्ञ न होते, वस्त्र न कोई पाता। खान-पान का वैभव, सब तुमसे आता॥ ओम जय लक्ष्मी माता॥ शुभ-गुण मंदिर सुंदर, क्षीरोदधि-जाता। रत्न चतुर्दश तुम बिन, कोई नहीं पाता॥ ओम जय लक्ष्मी माता॥ महालक्ष्मीजी की आरती, जो कोई जन गाता। उर आनन्द समाता, पाप उतर जाता॥ ओम जय लक्ष्मी माता॥ Tags- वैभव लक्ष्मी व्रत कथा, वैभव लक्ष्मी व्रत कथा हिन्दी मे, वैभव लक्ष्मी व्रत कथा और महिमा, Vaibhav Lakshmi Vrat Katha, Vaibhav Lakshmi Vrat Katha in Hindi, Vaibhav Lakshmi Vrat story, Vaibhav Lakshmi Vrat Vidhi, Vaibhav Lakshmi Vrat benefits, Vaibhav Lakshmi Vrat significance, Vaibhav Lakshmi Vrat Katha PDF, Vaibhav Lakshmi Vrat Katha book, Vaibhav Lakshmi Vrat Prasad, Vaibhav Lakshmi Vrat rituals, Vaibhav Lakshmi Vrat Aarti, How to perform Vaibhav Lakshmi Vrat, Vaibhav Lakshmi Vrat Katha video, Vaibhav Lakshmi Vrat Katha audio, Vaibhav Lakshmi Vrat Katha in English, Vaibhav Lakshmi Vrat Katha for prosperity, Vaibhav Lakshmi Vrat Katha Katha Pujan, Devi Vaibhav Lakshmi, Vaibhav Lakshmi Vrat Katha story in Hindu mythology, Vaibhav Lakshmi Vrat Katha Muhurat,
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