वट सावित्री व्रत कथा और पूजा की विधि विधान
वट सावित्री व्रत कथा में बरगद के पेड़ का विशेषतौर पर उल्लेख मिलता है। सुहागिनें वट सावित्री व्रत कथा वट वृक्ष यानी बरगद के पेड़ के नीचे सुनती हैं। इसके अलावा वट वृक्ष की पूजा भी की जाती है। आइए, जानते हैं वट सावित्री व्रत कथा में बरगद का महत्व क्या है।
कब किया जाता वैट सावित्री का व्रत
वट सावित्री व्रत, जिसे सावित्री अमावस्या या सत्यवान-सावित्री व्रत के नाम से भी जाना जाता है, हिंदू धर्म में सुहागिन महिलाओं द्वारा मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण व्रत है। यह व्रत प्रतिवर्ष ज्येष्ठ मास की अमावस्या को रखा जाता है। इस वर्ष यह व्रत 6 जून 2024 को मनाया जाएगा। यानि आज के दिन यह व्रत है।
इस व्रत से जुड़ी कथा सावित्री और सत्यवान के अटूट प्रेम और सावित्री के सतीत्व की है। सावित्री, राजा अश्वपति की पुत्री थीं, जिन्होंने सत्यवान, राज द्युमत्सेन के पुत्र से विवाह किया। विवाह से पूर्व, नारद जी ने सावित्री को बताया कि सत्यवान अल्पायु हैं और एक वर्ष बाद ही उनकी मृत्यु हो जाएगी।
लेकिन, सावित्री ने सत्यवान के प्रति अपने प्रेम और समर्पण के कारण यह स्वीकार नहीं किया और उनसे विवाह कर लिया। विवाह के बाद, सावित्री ने सत्यवान के साथ वनवास का जीवन स्वीकार किया।
व्रत कथा
एक दिन सत्यवान लकड़ी काटने गए लेकिन अचानक सत्यवान की तबियत बिगड़ने लगी। जब सत्यवान घर आए, तो बेसुध होने लगे। यह देखकर सावित्री ने सत्यवान का सिर अपनी गोद में रख लिया। इतने में यमराज सत्यवान के प्राण हरने लगे। यह देखकर सावित्री ने उन्हें रोकने का प्रयास किया लेकिन यमराज यह कहकर सत्यवान के प्राण ले जाने लगे कि सत्यवान अल्पायु थे, इसलिए उनका समय आ गया है। उन्होंने सावित्री को वापस घर लौटने को कहा लेकिन सावित्री यमराज के पीछे आती रही। यह देखकर यमराज ने वापस लौटने के बदले सावित्री को तीन वरदान मांगने को कहा। सावित्री ने कहा कि पहला वर है कि मेरे सास-ससुर की आंखों की रोशनी वापस आ जाए, दूसरा वर सावित्री का खोया हुआ राज्य वापस मिल जाए। तीसरा वर मांगते हुए सावित्री ने कहा कि "मैं 100 पुत्रों की मां बनना चाहती हूं।" यमराज ने अपना पीछा छुड़ाने के लिए सावित्री को तथास्तु कहा और वहां से सत्यवान के प्राण लेकर जाने लगे। लेकिन तभी सावित्री ने यमराज को रोकते हुए कहा कि आपका दिया वरदान पूरा कैसे होगा, जब आपने मेरे पति के प्राण ही हर लिए हैं। पतिव्रता स्त्री को देखकर यमराज ने सावित्री के पति सत्यवान के पति वापस लौटा दिए। यमराज के कहने पर सावित्री घर के पास मौजूद वट वृक्ष के पास लौटी, तो वहां पर सत्यवान के मृत शरीर में वापस प्राण आ गए।
वट सावित्री व्रत पूजा विधि
- इस दिन महिलाएं सुबह उठकर स्नान करें।
- पारंपरिक और लाल रंग के वस्त्र धारण करें।
- इसके बाद सोलह शृंगार करें।
- प्रसाद के लिए सात्विक भोजन तैयार करें।
- कच्चा सूत, जल से भरा कलश, हल्दी, कुमकुम, फूल और पूजन की सभी सामग्री लेकर जहां वट वृक्ष है, वहां पर जाएं।
- वट वृक्ष पर जल अर्पित करें और उसके समक्ष देसी घी का दीपक जलाएं।
- इसके बाद सभी पूजन सामग्री एक-एक करके भाव के साथ अर्पित करें।
- फिर पेड़ के चारों ओर 7 बार परिक्रमा करें और उसके चारों ओर सफेद कच्चा सूत बांध दें।
- वट सावित्री कथा का पाठ करें।
- अंत में आरती से पूजा का समापन करें।
- भगवान का आशीर्वाद लें और पति की लंबी उम्र के लिए प्रार्थना करें।
- परिवार के बड़े-बुजुर्ग से भी आशीर्वाद लें।
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