वीर पूली | वीर फुली | बीरबसी व्रत कथा हिन्दी मे
वीर पूली व्रत: वीर पूली का व्रत रक्षा बंधन के पहले आने वाले वार को किया जाता है। वार का मतलब रविवार और मंगलवार से है। रक्षा बंधन के पहले जो भी रविवार या मंगलवार आए उसी दिन वीर पूली का व्रत किया जाता है। कुछ लोग वीर पूली को वीर फुली और बीरबसी का व्रत भी कहते है। यह व्रत मे आप कथा सुनने के बाद पूरे दिन खाना खा सकते है। कुछ लोग पूरे दिन भर भूखा रहते है। इस व्रत मे लड़की अपने भाई के घर खाना खाती है और अपना व्रत खोलती है। यही इस व्रत की मान्यता है। यह व्रत बहन अपने भाई के लिए करती है। और कथा सुनकर भाई के घर व्रत खोलने जाती है। बहन इस दिन अपने भाई के लिए मंगल कामना करती है। और भाई का घर बहन की दुआ से खुशियो से भर जाता है।
वीर पूली व्रत कथा
प्राचीन समय की बात है, एक बार एक नगर में एक साहूकार रहता था। उसके सात पुत्र और एक पुत्री थी। साहूकार अपनी बेटी से बहुत प्यार करता था। वो उसकी बहुत ही लाडली थी। सेठ – सेठानी शुरू से ही अपनी बेटी से वीर पूली का व्रत करवाते थे। जब बेटी का विवाह हो गया तो उसे हर वर्ष वीर पूली पर घर बुलाकर खाना खिलाते और अच्छे से अपनी बेटी को विदा करतें। क्योंकि ऐसी मान्यता है कि वीर पूली के दिन शादी के बाद भी बहन को अपने ही पीहर का खाना या उनके द्वारा दिए गए पैसों से ही भोजन खाना होता हैं।
माता पिता के देहावसान के बाद सब भाई अलग-अलग रहने लगें। साहूकार के छ: बेटों की आर्थिक स्थिति अच्छी थी, उनके पास सब-कुछ था। परंतु सबसे छोटे बेटे के पास कुछ नही था। वो बहुत गरीब था। वो अपने बड़े भाई के खेतों में काम करके अपने और अपने परिवार का पालन करता था। उसकी स्त्री बहुत ही सुशील और गुणवान थी। वो भी अपने पति का साथ देने के लिये सुबह अपनी जेठानी के घर काम करती और बाद में जंगल से लकड़ी लाकर नगर में बेचती।
सभी भाई अपने घर परिवार में इतने व्यस्त हो गये की उन्हे अपनी इकलौती बहन का ध्यान ही नही था। इधर बहन भी अपने घर परिवार में खुश थी। परंतु उसे अपने भाइयों की याद आती। जब वीर पूली के व्रत आया तो बहन को लगा कि उसके भाई उसे लेने आयेंगे या उसे अपने घर बुलायेंगे परंतु ऐसा नही हुआ। किसी भी भाई ने ना तो बहन को अपने घर आने का न्योता भेजा, ना भोजन भेजा और ना ही उसको पैसे भेजें जिससे वह वीर पूली का व्रत कर सके।
बहन मन ही मन में विचार करके चिंतित होने लगी कि उसका वीर पूली का व्रत कैसे पूर्ण होगा ? उसको परेशान देखकर उसके पति ने उससे चिंता का कारण पूछा तो उसने उसे सब बता दिया। तब उसके पति ने उससे कहा कि तुम चिंतित ना हो, ऐसा हो सकता है कि वो किसी कारणवश भूल गए हो, तुम स्वयं उनके घर चली जाओं और अपना व्रत पूर्ण कर आओं। और बच्चों को यही घर पर छोड़ जाओ।
पति की आज्ञा लेकर वो सबसे पहले अपने सबसे बड़े भाई के यहां गई। उसने भाभी से पूछा कि, भैया कहां है? आज वीर पूली का दिन है। भाभी ने कहा, आपके भाई तो बाहर गए हैं। ऐसे वो अपने छहों भाइयों के घर गई और सभी भाइयों के घर पर उसके साथ ऐसा ही व्यवहार हुआ।
अंत में वो अपने सातवें यानी सबसे छोटे भाई के घर गई। वो बहुत गरीब था। उसके घर पर पहुँचते ही उसकी भाभी बहुत खुश हुई और उसने उसकी खूब आव-भगत करी। फिर भाभी ने अपनी ननद से पूछा कि आपका इस तरह कैसे आना हुआ? तब बहन बोली, भाभी आज वीर पूली का व्रत हैं और मैं इसीलिए अपने भाई से मिलने आई थी। भाभी बोली फिर तो मैं आपके भोजन की तैयारी करती हूँ, आप यहाँ बैठिये और मैं जंगल से लकड़ियां लेकर आती हूँ। तब बहन ने सोचा कि यहां अकेले बैठकर क्या करूंगी मैं भी साथ ही चली जाती हूं। तो उसने भाभी से कहा, चलो भाभी मैं अकेली यहां बैठ कर क्या करूंगी। मैं भी आपके साथ चलती हूँ। और वह दोनों ननद-भाभी जंगल में लकड़ियां लाने चली गई।
उसकी भाभी जंगल से लकड़ी लाकर नगर बेचती थी। उसने उस दिन भी वही किया तो उस दिन उसको लकड़ियों के पहले से बहुत अच्छे दाम मिले। परंतु इस सब में शाम हो गई तो ननद ने अपनी भाभी से कहा – भाभी शाम हो गई है, मैं बच्चों को घर अकेला छोड़ कर आई हूँ। सब घर पर मेरा इंतजार कर रहे होंगे। इसलिये मुझे अब जल्दी से घर पहुंचना है, मैं चलती हूँ।
तब भाभी ने कहा, आप अपने भाई से तो मिलकर जाओ। और ऐसा कहकर भाभी ने लकड़ियों को बेचकर जो पैसे मिले थे उसमें से आधे पैसे अपनी ननंद को विदा के रूप मे दे दिए। बहन अपने भाई से मिलने जैसे ही खेत पर पहुंची, तो भाई बहुत खुश हुआ और भाई बोला बहन आज तो बीरबसी है चल घर चल, घर से खाना खाकर ही जाना। बहन बोली, भैया अब तो शाम हो गई है, मुझे घर जल्दी पहुंचना है। फिर कभी आऊंगी, अभी तो मैं जा रही हूं। भाई ने खेत में कोदू बोया था तो उसने कहा, बहन ऐसा है तो तू यह कोदू ले जा और भाई ने बहन को कोदू भरकर दे दिया।
बहन कोदू लेकर चल दी किंतु उसने मन ही मन विचार किया कि जब वो कोदू लेकर अपने घर पहुंचेगी तो सब लोग क्या कहेंगे? सास-ससुर, पति सबके सामने बेज्जती होगी। सब बोलेंगे कि भाई के यहां गई थी और कोदू लेकर आई है। यह सोचकर उसने रास्ते में ही कुम्हार से एक हांडी खरीदी और पत्थर का चूल्हा बनाया। उस पर कोदू को पानी डालकर पका लिया। फिर उसका भगवान को भोग लगाकर खुद खा लिया और जो बचा उसे वही पत्थर से ढक कर रख दिया। जैसे ही वह आगे बढ़ने लगी तभी भगवान शंकर और माता पार्वती बुड्ढे-बुढ़िया का रूप लेकर उसके सामने आ गए। और बोले, हे बेटी! हमें भूख लगी है। तो वो बोली बाबा मुझे तो देर हो रही है, वहाँ पत्थर से ढ़का हुआ खाना रखा है आप लेकर खालो।
तब बुड्ढे-बुढ़िया का रूप लिये भगवान शंकर और माता पार्वती जी बोले हमें तो तुम स्वयं दोगी तभी हम खाएंगे, नहीं तो तुम्हें हम श्राप दे देंगे। तब वो बेचारी वापस गई और जैसे ही उसने पत्थर हटाकर बर्तन खोला तो उसमें 36 तरह की तरकारी और 32 तरह के भोजन थे। तब भगवान शंकर और माँ पार्वती अपने असली स्वरूप में आ गए और बोले बेटी जो मांगना हैं माँग लें। तब बहन बोली हे भगवन मेरे पास तो सब कुछ है। मेरे छ: भाइयों के पास भी सब कुछ है। परंतु मेरा सबसे छोटा भाई बहुत गरीब है, आप उस पर कृपा करो। भगवान शंकर उसको उसका मनचाहा आशीर्वाद देकर वहाँ से अंतर्ध्यान हो गये।
उसके बाद उसके छोटे भाई के घर की जगह महल बन गया और उसका घर सोने चाँदी और हीरे जवाहरात से भर गया।
दोस्तो जब भी वीर पूली का व्रत आए तो अपनी बहन को खाना खिलाना और उसे खुशी खुशी घर से विदा करना।
व्रत पूरा करने के बाद यह अव्षय करे नि तो व्रत पूरा नही होगा
यह कथा सुनने के बाद जो गेहु आप कथा सुनने के लिए लेकर जाते है उसके कुछ दाने हाथ मे लेकर 2 लाइन बोली जाती है। जिसे बोलते बोलते उन गेहु के दानो को गॅस पर सेंका जाता है। फिर व्रत खोलते समय इन दानो को बहन खाती है। ऐसा करने से भाई के सारे दुश्मनो का नाश हो जाता है। यह लाइन नीचे दी गई है।
" धोणी हेकू धकोणी हेकू
मा वीरा रो वेरी हेकू "
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